चमोली : चमोली जिले के काश्तकारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान मंडल में सीडीओ डा. अभिषेक त्रिपाठी की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गई। बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान के वैज्ञानिक डॉ. ओएम तिवारी एवं जड़ी बूटी संस्थान के वैज्ञानिक एके भंडारी ने नील-हरित शैवाल की कृषि के बारे में जानकारी दी। वैज्ञानिक ओएम तिवारी ने नील-हरित शैवाल की कृषि के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि नील हरित शैवाल स्पिरुलिना एक मात्र शैवाल है, जिसको मानव आहार के रूप में प्रयोग कर सकता है। इसकी विश्व में कुल नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। कहा कि पूर्व में यह अवधारणा थी कि स्पिरुलीना शैवाल केवल समुद्र में पाया जाता है, लेकिन लोकटक झील मणिपुर का शोध करने पर पता चला कि यह शैवाल ताजे पानी में भी पायी जाती है, जिस कारण इसकी खेती करने की संभावनाएं उत्पन्न हुई हैं। उन्होंने बताया कि नील-हरित शैवाल की कृषि से किसानों की आय भी होगी। स्पिरुलीना शैवाल को विश्व स्वास्थ्य संस्थान ने वर्ष 1971 में सुपर फूड का दर्जा भी प्राप्त है एवं इसकी एक कैप्सूल में दो लीटर दूध से अधिक ऊर्जा मिलती है। वहीं, डा. अभिषेक तिवारी ने बताया कि मनरेगा के तहत विभिन्न औषधीय पौंधों की कृषि के लिए किसानों को मुफ्त पौध उपलब्ध करवायी जा रही है जिसमें किसान कुटकी, अतीस, कूठ आदि की खेती कर सकते हैं। इस दौरान परियोजना निदेशक आनंद सिंह एवं संस्थान के अन्य अधिकारी मौजूद रहे। (एजेंसी)