उत्तराखंड

गाजरघास को जड़ से खत्म करने पर जोर दिया

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रुद्रपुर। भारतीय षि अनुसंधान परिषद ने वित्त पोषित एवं खरपतवार विज्ञान निदेशालय जबलपुर मध्य प्रदेश के तत्वावधान में खरपतवार नियंत्रण परियोजना के तहत सस्य विज्ञान विभाग, षि महाविद्यालय द्वारा गाजरघास जागरुकता सप्ताह का समापन किया। नरमन ई़ बोरलग फसल अनुसंधान केन्द्र पंतनगर में में कार्यक्रम की अध्यक्षता निदेशक शोध ड़ एएस नैन ने की। ड़ नैन ने कहा कि गाजरघास जागरूकता अभियान को आने वाले वर्ष में विवि स्तर पर आयोजित करेंगे। उन्होंने विश्वविद्यालय के तहत आने वाले हर केन्द्र के संयुक्त निदेशकों से कहा कि वह अनुसंधान केन्द्रों पर गाजरघास को पूर्णतया: समाप्त करने का प्रण लें जिससे गाजरघास का पूर्णतया उन्मूलन किया जा सके। उन्होंने बताया कि गाजरघास के सम्पर्क में आने से खाज-खुजली, गर्दन, चेहरे तथा बाहों की चमड़ी सख्त होकर फट जाती है जिस कारण घाव बन जाते हैं। इसका निदान करना असम्भव हो जाता है। इस घास को नियंत्रण करने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि इसे जड़ से उखाड़ कर जला दें या गड्डे में दबा दें क्योंकि इसके नियंत्रण के लिए प्रति वर्ष रासायनिक नियंत्रण के लिए लगभग 11,800 करोड़ रुपये की लागत आती है। यह आंकड़े 2010 के सर्वे के अनुसार हैं। जबकि वर्तमान समय में ये लागत और भी अधिक हो गई है। यहां पर फसल अनुसंधान केन्द्र के सहनिदेशक ड़ एपी सिंह, सस्य विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक खरपतवार परियोजना के स्टाफ के सदस्यों एवं फसल अनुसंधान केन्द्र के कर्मचारी सहित लगभग 100 लोगों ने प्रतिभाग लिया। खरपतवार प्रबंधन परियोजना अधिकारी ड़ एसपी सिंह ने इस जागरूकता सप्ताह के तहत प्रतिदिन चलाये गये अभियान को चलचित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया। ड़ एसपी सिंह ने बताया कि भूमि गीली होने पर खरपतवार को हाथों में पलीथिन या दस्ताने पहनकर उखाड़ देना चाहिए और अच्छी तरह जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।

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