-राज्यों के विधेयक रोकने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो टूक
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूछा कि अगर राष्ट्रपति, राष्ट्रपति द्वारा दिए गए संदर्भ के माध्यम से राय मांगते हैं, तो इसमें गलत क्या है, क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर निश्चित समय-सीमाएं थोपी जा सकती हैं. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि वह केवल संदर्भ का उत्तर दे रहा है और इससे तमिलनाडु मामले में दिए गए फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
गौर करें कि सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई कर रहा है. इसमें संवैधानिक प्रश्न उठाए गए थे कि क्या अदालत, राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकती है.
इस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम यह तय नहीं कर रहे हैं कि तमिलनाडु का फैसला सही है या नहीं. हम इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर रहे हैं. हम केवल राष्ट्रपति द्वारा दिए गए संदर्भ का उत्तर दे रहे हैं.
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि न्यायालय केवल कानून पर अपना विचार व्यक्त करेगा. साथ ही तमिलनाडु मामले पर कोई निर्णय नहीं सुनाएगा. पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी एस नरसिम्हा और ए एस चंदुरकर भी शामिल थे.
गौर करें तो न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को अपने फैसले में तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों पर अपनी सहमति न देने के फैसले को अवैध और मनमाना बताया. साथ ही राष्ट्रपति को इन विधेयकों को मंजूरी देने के लिए 3 महीने की समय-सीमा तय की.
मई में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए शीर्ष अदालत से यह जानने का प्रयास किया कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समय-सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं.
आज की सुनवाई के दौरान, तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले की प्रकृति ऐसी है कि पीठ तमिलनाडु मामले में दिए गए फैसले को प्रभावित कर सकती है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पीठ केवल कानून पर अपनी राय व्यक्त करेगी और तमिलनाडु मामले पर कोई फैसला नहीं सुनाएगी. न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा कि पीठ केवल एक राय दे रही है और इससे फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
सिंघवी ने इस संदर्भ को एक अंतर-न्यायालयीय अपील बताते हुए तर्क दिया कि राष्ट्रपति का परामर्शी क्षेत्राधिकार पुनर्विचार याचिका का विकल्प नहीं हो सकता. साथ ही इस बात पर जोर दिया कि संविधान पीठ से तमिलनाडु मामले में दिए गए फैसले, गुण-दोष और विषय-वस्तु को बदलने के लिए कहा जा रहा है.
न्यायमूर्ति नाथ ने पूछा, वह उस फैसले को कैसे बदलेगा जो पहले ही एक खंडपीठ द्वारा दिया जा चुका है. आप इस तरह आगे बढ़ रहे हैं, मानो फैसला स्वत: ही रद हो जाएगा. यह सही नहीं है. आप ऐसा क्यों मान रहे हैं? सिंघवी ने कहा कि हम विचारणीयता की जांच कर रहे हैं.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हम यह तय नहीं कर रहे हैं कि तमिलनाडु का फैसला सही है या नहीं. हम उस मुद्दे पर फैसला नहीं कर रहे हैं. हम केवल राष्ट्रपति द्वारा दिए गए संदर्भ का जवाब दे रहे हैं. सिंघवी ने कहा कि अगर माननीय न्यायाधीशों के जवाब तमिलनाडु के फैसले के अनुरूप नहीं हैं, तो यह एक अलग मामला बन जाता है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमें इससे कोई सरोकार नहीं है.
पीठ ने पूछा कि अगर राष्ट्रपति खुद राष्ट्रपति के संदर्भ के जरिए राय मांगती हैं, तो इसमें क्या गलत है. पीठ ने यह सवाल तब उठाया जब विपक्षी शासित तमिलनाडु और केरल सरकारों के वकील ने राष्ट्रपति के संदर्भ की स्वीकार्यता पर ही सवाल उठाया. पीठ ने कहा कि वह केवल सलाहकार क्षेत्राधिकार के तहत काम कर रही है.
केरल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 200 के संबंध में इसी तरह के प्रश्नों की व्याख्या पहले ही कर चुका है. इसके अनुसार राज्यपालों को पंजाब, तेलंगाना और तमिलनाडु से संबंधित मामलों में राज्य के विधेयकों पर यथाशीघ्र कार्रवाई करनी होती है.
वेणुगोपाल ने तर्क दिया कि पहली बार, तमिलनाडु मामले में, विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर स्वीकृति के लिए एक समय सीमा तय की गई थी. साथ ही इस बात पर जोर दिया कि एक बार जब निर्णय इस क्षेत्र को कवर कर लेते हैं, तो नए राष्ट्रपति संदर्भ पर विचार नहीं किया जा सकता.
वेणुगोपाल ने जोर देकर कहा कि केंद्र को राष्ट्रपति से संदर्भ प्राप्त करने के लिए अनुच्छेद 143 का सहारा लेने के बजाय औपचारिक समीक्षा की मांग करनी चाहिए थी.
पीठ ने पूछा कि राष्ट्रपति द्वारा संदर्भ दिए जाने से तमिलनाडु मामले के फैसले पर क्या प्रभाव पड़ेगा. साथ ही ये कहा कि वह केवल इस बात पर विचार करेगी कि संदर्भ में उठाए गए प्रश्न का उत्तर दिया गया है या नहीं.
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, हमें एक भी ऐसा फैसला दिखाइए, जहां खंडपीठ में संदर्भ मान्य न हो. हम इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर रहे हैं कि तमिलनाडु सही है या नहीं…
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने केरल और तमिलनाडु दोनों सरकारों की दलीलों का विरोध किया. सुनवाई दोपहर के भोजन के बाद जारी रही.
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई शुरू की. इसमें संवैधानिक प्रश्न उठाए गए थे कि क्या अदालत राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकती है.
केंद्र ने अपने लिखित निवेदन में तर्क दिया कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर निश्चित समय-सीमा लागू करने से सरकार के एक अंग द्वारा संविधान द्वारा उसे प्रदान नहीं की गई शक्तियों का प्रयोग करने जैसा होगा, और इससे संवैधानिक अव्यवस्था पैदा होगी.
केंद्र ने जोर देकर कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निश्चित समय-सीमा लागू करने से संविधान द्वारा स्थापित नाजुक संतुलन भंग हो जाएगा और कानून का शासन नकार दिया जाएगा.