इससे बेहतर पिरूल का कोई और उपयोग नहीं

Spread the love

उत्तरकाशी। जंगलों में लगी आग को भड़काने में पेट्रोल का काम करने वाले पिरूल (चीड़ की पत्तियां) का सही उपयोग हो तो न सिर्फ जंगल आग से बचेंगे, बल्कि ग्रामीणों को रोजगार भी मिलेगा। उत्तरकाशी जिले के डुंडा ब्लक स्थित चकोन गांव में चीड़ के पिरूल से बिजली उत्पादन बीती छह जुलाई से शुरू हो चुका है। 25 किलोवाट की इस यूनिट से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में 45 व्यक्तियों को रोजगार मिला है। इनमें 35 महिलाएं हैं। इस प्लांट में अब तक 4500 यूनिट बिजली तैयार हुई है, जिसे उत्तराखंड पवर करपोरेशन लि (यूपीसीएल) को बेचा गया।
चकोन में पिरूल से बिजली तैयार करने वाली यह जिले की पहली यूनिट है। उद्यमी महादेव सिंह गंगाड़ी ने यह यूनिट स्थापित की है। सरकार ने भी इसमेंाण उपलब्ध कराने में सहयोग किया। गत 30 सितंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने इसका उद्घाटन किया था। इसके बाद यह प्लांट विधिवत रूप से संचालित हो गया है।
यूपीसीएल को बेची 7़53 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली
प्लांट संचालक महादेव सिंह गंगाड़ी ने बताया कि अभी तक उत्पादित 4500 यूनिट बिजली यूपीसीएल को 7़53 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बेची गई है। डेढ़ किलो पिरूल से एक यूनिट बिजली पैदा हो जाती है। बताया कि प्लांट लगाने में 25 लाख रुपये खर्च हुए। इससे 35 महिलाओं को रोजगार मिला है, जो प्लांट के लिए पिरूल एकत्र करती हैं। इसके अलावा पांच युवकों को प्लांट में रोजगार मिला है।
इस तरह पैदा होती है बिजली
प्लांट संचालक गंगाड़ी कहते हैं कि प्लांट में सबसे पहले पिरूल को कटर से काटकर छोटे-छोटे बोरों में और फिर हूपर में बने एक बक्स में डाला जाता है। जहां पर स्पार्किंग होने से पिरूल आग पकड़ लेता है। इससे निकलने वाली गैस साइक्लोन में जाती है, जहां कण जमा हो जाते हैं और राख नीचे इकट्ठा हो जाती है। इस प्रक्रिया के तहत बिजली बनती है। प्लांट का भी जनरेटर पिरूल से तैयार बिजली से ही चल रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *