संपादकीय

नई सरकार पर नजर

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नई लोकसभा के गठन को लेकर एनडीए गठबंधन में अपनी तैयारी शुरू कर दी है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री एवं अपनी सरकार के सभी मंत्रियों का इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया है। एनडीए गठबंधन ने पूर्ण बहुमत के आंकड़े को आसानी से हासिल कर लिया है और यदि किसी भी प्रकार से कोई राजनीतिक संकट खड़ा नहीं हुआ तो नरेंद्रमोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की हैट्रिक बनाने जा रहे हैं। अभी तक कयास बाजिया लगाई जा रही थी कि बिना नीतीश कुमार एवं चंद्रबाबू नयडू के सरकार बनाना संभव नहीं है लेकिन एक पक्ष यह भी है कि यदि यह दोनों नेता किसी भी प्रकार से अपनी महत्वाकांक्षाओं के तहत कोई दबाव बनाते हैं और एनडीए उस पर सहमत नहीं होती है उसके बावजूद अन्य निर्दलीयों के भरोसे भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर सरकार बना सकती है। देश की जनता ने पहले ही भारतीय जनता पार्टी को उससे भी अधिक सीट दी है जितनी कि पूरी “इंडिया” गठबंधन ने भी हासिल नहीं की है। देखा जाए तो फिलहाल नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने में कोई बड़ी बाधा नजर नहीं आ रही है लेकिन उसके बावजूद राजनीति में महत्वाकांक्षाओ के कारण सब कुछ संभव है। सरकार बनाने के लिए इंडिया गठबंधन भी दम भर रहा है कि हम सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं। पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान यह बातें भी उभर रही थी कि यदि एनडीए में सीटों को लेकर भारतीय जनता पार्टी बहुमत का आंकड़ा प्राप्त नहीं करती है तो इन परिस्थितियों में समर्थन देने की एवज में नरेंद्र मोदी के स्थान पर किसी दूसरे नेता पर सहमति बन सकती है। मतगणना के दिन से ही सरकार बनाने की अटकलें पर सवाल खड़े होने लगे थे और इन्हीं परिस्थितियों के चलते नीतीश कुमार चंद्रबाबू नायडू ने हर स्थिति में एनडीएके साथ जुड़े रहने का ऐलान किया था। याद रखना चाहिए कि इन दोनों नताओं ने ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने को लेकर उनके विरोध में राष्ट्रीय अभियान चलाया चलाया था और पूर्व कि वह परिस्थितियों वर्तमान सरकार के गठन के वजूद पर भी सवाल खड़े कर सकती है। नीतीश कुमार तो वैसे भी बार-बार पाला बदलने के लिए विख्यात है और यदि कहीं उन्हें थोड़ा भी बड़ा लाभ मिलेगा तो वह गठबंधन पर ग्रहण लगा सकते हैं। यदि नरेंद्र मोदी इस बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनके लिए परिस्थिति पूर्व जैसी नहीं होगी क्योंकि अब वह कोई भी फैसला लेने के लिए पूरी तरह से खुद पर निर्भर नहीं रह सकेंगे। एक तरफ जहां उन पर अपने ही घटक दलों का दबाव होगा तो वहीं दूसरी ओर एक मजबूत विपक्ष भी सदन में सरकार के सामने चुनौती के रूप में खड़ा है।

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