खालिद की खाला ने दर्शकों को खूब गुद्गुदाया
श्रीनगर गढ़वाल। जश्न-ए-विरासत नाट्य महोत्सव का पहला दिन दिल्ली के प्रसिद्घ नाट्य ग्रुप लीला थिऐटर के नाम रहा। लीला थिऐटर ने बेगम कुदसिया जैदी द्वारा लिखित नाटक खालिद की खाला का शानदार मंचन किया गया। कसी हुई स्क्रिप्ट, शानदार अभिनय एवं कलाकारों की संवादअदायगी ने दर्शकों को नाटक के अंतिम तक बांधे रखा। नाटक में खालिद की खाला ने दर्शकों को खूब गुद्गुदाया। तस्वीर आर्ट गुप्त एवं वरदान के संयुक्त तत्वावधान में गढ़वाल विवि के चौरास परिसर में चल रहे नाट्य महोत्सव देखने के लिए पहले दिन की लोक कला संस्ति केंद्र का प्रेक्षागृह दर्शकों से खचाखच भरा रहा। नाटक खालिद की खाला दो युवा प्रेमियों, खालिद और अहमद के इर्द-गिर्द घूमता है,जो अपने क्रश का दिल जीतने के लिए खालिद की खाला की मदद लेते हैं। हालांकि, उनकी योजना एक अप्रत्याशित मोड़ लेती है, जिससे एक प्रफुल्लित करने वाला और दिल टू लेने वाला निष्कर्ष निकलता है। खालिद अपनी वित्तीय समस्याओं से टुटकारा पाने के लिए अपनी खाला से मिलना चाहता है। वह अपनी गर्लफ्रेंड को लंच पर बुलाने के लिए भी उतना ही बेताब रहता है। यह महज संयोग है कि ये सहेलियां जो अत्यधिक रूढ़ीवादी और कठोर अनुशासनप्रिय खान बहादुर सिब्तैन की निगरानी में रहते हैं। प्यारे दोस्त खालिद की खाला की मौजूद्गी में अपनी प्रेमिकाओं को दोपहर के भोजन पर आमंत्रित करने की योजना बनाते हैं। जैसे ही दोपहर के भोजन की तैयारी चल रही थी, खालिद को अपनी खाला से एक और संदेश मिला कि उनके आने में देरी हो गई है। सुरया और नुसरत ने अपने प्रेमियों से स्पष्ट रूप से कहा था कि वे दोपहर के भोजन के लिए केवल एक महिला की उपस्थिति में आएंगे। निराश होकर, खालिद और अहमद अब अपनी प्रेमिकाओं से मिलने की सारी आशा खो दी है। हालांकि, आशा की किरण तब नजर आती है जब उनके दोस्त बाबाखान की एंट्री होती है। उन्हें एक शो में एक महिला के रूप में दिखना है। वह वेशभूषा के साथ रिहर्सल करना चाहते हैं। दोस्त इस बात पर जोर देते हैं कि वह खालिद की खाला के रूप में काम करें। इसके साथ ही असली मजा शुरू होता है। कहानी अंत में असली खाला के आने के बाद सब को ये पता चलता है कि असली खाला तो कोई और है ये तो बाबू खान है।
एक रूका हुआ फैसला आज रू गुरुवार को जश्न-ए-विरासत नाट्य महोत्सव में एकलव्य ग्रुप देहरादून के कलाकारों का मंचन होगा। एकलव्य ग्रुप द्वारा रंजीत कपूर के लिखे हुए नाटक एक रूका हुआ फैसला का मंचन करेगा,जिसका निर्देशन अखिलेश सिंह ने किया है।