कोटद्वार है न स्पेशल: पूरे उत्तराखण्ड में नदियों में खनन बन्द पर पर्यावरण मंत्री की विधान सभा में चालू
कोटद्वार। बरसात शुरू होते ही पूरे उत्तराखण्ड प्रदेश में सरकार के आदेश पर 1 जुलाय से नदियों में खनन बन्द कर दिया गया है। किन्तु प्रदेश के पर्यावरण मंत्री की विधान सभा कोटद्वार में रीवर ट्रेनिग के नाम पर सुखरो नदी पर खनन करने की अनुमति दे दी गयी है। जिसके चलते जुलाय महीनें में भी इस नदी पर जेसीबी और भारी मशीनों से खनन रात दिन जारी है। जो कि कोटद्वार को पूरे प्रदेश में स्पेशल बनाता दिखाई दे रहा है। बरसात में हो रहा खनन जहां स्थानीय जनता, खुद खनन का काम करने वालों के लिये जान का खतरा सावित हो सकता है वहीं बरसात में नदी की प्राकृतिक प्रकृति और उसमें पनपने वाले जीवों के लिये भी अभिशाप है। अब प्रश्न यह है कि कोटद्वार को खनन के मामले में इतनी छूट किस आधार पर मिल रही है।
ज्ञातव्य हो कि मई अंतिम सप्ताह और जून प्रथम सप्ताह में कोटद्वार स्थित सुखरौ नदी, ग्वालगढ़ एवं सिगड्डी स्रोत में खनन के पट्टों का आवंटन किया गया था। जिसमें जून के महिने में खनन कार्य होने के बाद सरकार की नीति के तहत 1 जुलाई से बंद कर दिया गया है। बावजूद इसके कोटद्वार प्रशासन द्वारा इन पट्टा धारकों की मांग पर आवंटित खनन पूरा न होने के कारण और समय की मांग की गई। इस तरह की कार्यवाही के बारे में चर्चा है कि यह एक सुनियोजित मिली भगत थी। इसके तहत पट्टों का आवंटन जान बूझकर बरसात के प्रतिबंधित समय 1 जुलाई से 30 सितम्बर से ठीक 25 दिन पूर्व पट्टों का आवंटन किया गया। ताकि नदियों में बरसात के समय नया उपखनिज आरबीएम आ जाये और उससे पट्टा धारकों का मुनाफा बढ़ जाय।
शासन के आदेश पर हो रहा है खनन का काम
बताया जा रहा है कि कोटद्वार में प्रतिबन्धित समय में चैनलाइजेशन के नाम पर हो रहे खनन का आदेश शासन से मिला है। कोटद्वार के स्थानीय प्रशासन और जिला प्रशासन ने तो केवल चैनलाइजेशन के नाम पर खनन के पट्टेधारकों की मांग पर शासन द्वारा मांगी गयी रिपोर्ट भेजी है। जिसके आधार पर बरसात के प्रतिबन्धित समय में भी चैनलाइजेशन के नाम पर खनन की अनुमति मिली है। जिससे लगता है कि प्रशासन से लेकर शासन तक को कोटद्वार की नदियों से बाढ़ आने का भारी खतरा दिखाई दे रहा है। जबकि हालात यह है कि इस चैनलाइजेशन के नाम पर हुए खनन से बने गढ्ढ़ों में डूबकर अब तक चार की जान जा चुकी है।
पहला यक्ष प्रश्न
पट्टों की नीलामी में विलंब क्यों?
शासन द्वारा जब जनवरी 2020 को सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिया गया कि उत्तराखण्ड रिवर टे्रनिंग नीति 2020 के बिंदु 3 में उल्लेखित ऐसे क्षेत्र जहां नदी/जलाशय/नहर के द्वारा सिल्ट/उपखनिज, आरबीएम अत्यधिक मात्रा में जमा हो गया हो और जिसके जमा होने से भू-कटाव एवं जानमाल का खतरा होने की संभावना है को चिन्हित कर स्थानीय तहसील स्तर से खुली नीलामी की जाय। जिस पर पौड़ी गढ़वाल के जिलाधिकारी ने नवंबर 2020 एवं अप्रैल 2021 को कोटद्वार में उपरोक्त नदियों में जमा उपखनिज को हटाने के लिए अनुमति दे दी थी तो इनका नीलाम छ: माह बाद मई अंतिम और जून प्रथम सप्ताह में क्यों किया गया।
दूसरा यक्ष प्रश्न
पट्टा धारकों को समय पर आरबीएम उठाने की शर्त क्यों नहीं?
कोटद्वार की सुखरो, ग्वालगढ़ एवं सिगड्डी स्रोत पर जमा उपखनिज को उठाने के लिए जब रिवर टे्रनिंग के नाम पर पट्टे नीलाम किये गये तो उस समय पूरा आरबीएम 30 जून तक उठाने की शर्त पट्टे में क्यों नहीं रखी गई। क्या प्रशासन इस बात के लिए मजबूर है कि अगर पट्टा धारक तय सीमा पर आवंटित उपखनिज को नहीं उठाता है तो उसके लिए प्रशासन उसे और समय देता रहेगा। यह परिपाटी पिछले वर्षों में भी कोटद्वार में अपनाई गई। जिसमें खनन कारियों को प्रतिबंधित समय जुलाई और अगस्त तक में भी खनन की अनुमति देकर खनन कराया गया। जबकि नियम यह है कि बरसात के समय में किसी भी हालत में नदियों में खनन नहीं किया जा सकता है।
बॉक्स समाचार
हमने तो केवल रिपोर्ट भेजी: एसडीएम
कोटद्वार तहसील के एसडीएम योगेश मेहरा का कहना है कि 30 जून को चैनेलाइजेशन की अवधि समाप्त होने पर नदियों में चैनलाइेजेशन का काम बंद कर दिया गया था। जिला प्रशासन की ओर से चैनेलाइजेशन के संबंध में रिपोर्ट मांगी गई थी। कमेटी ने मौके की स्थिति से जिलाधिकारी को अवगत कराया था।
हे मेरी बूटी, कहां लागी और कहां फूटी
कोटद्वार में रिवर ट्रेनिंग यानि चैनलाइजेशन क्यों और कैसे शुरू हुआ, इसके लिये हमें चार अगस्त 2017 की सुबह को याद करना होगा जब पनियाली गदेरा रौद्र रूप में था। कई घरों में गदेरे का मलबा घुस गया। सात व्यक्तियों को जान गंवानी पड़ी, जबकि बड़ी आबादी को लाखों का नुकसान हुआ। सरकार बोली कि गदेरे को जंगल के भीतर से ही सुखरो नदी की ओर डायवर्ट कर दिया जाएगा। इसका विरोध सुखरौ क्षेत्र के लोगों ने किया तो आज चार वर्ष बीत जाने के बाद भी पनियाली गदेरा बरसात में आमजन की सांसों को थाम देता है।
तब तय किया गया कि कोटद्वार की नदियों को नाले के रूप में यानि एक चैनल में परिवर्तित किया जाय। जिसके लिये तब उत्तराखण्ड की खनन नीति के तहत खो, सुखरौ, पनियाली, ग्वालगढ़ व सिगड्डी सोत पर चैनलाईजेशन करने का काम शुरू हुआ। जिसके लिये प्रतिवर्ष पट्टे नीलाम किये जाते हैं। लेकिन ये पट्टे बरसात आने से पहले नहीं बल्कि बरसात के दौरान जारी किये जाते हैं। यही नहीं आज तक 2017 में पनियाली के दूसरे गधेरे जिसमें मानव व मकानों का नुकसान हुआ था उसमें अभी तक चैनलाईजेशन नहीं हो पाया है क्योंकि पस गधेरे में खनन करने में खनन कारोबारियों को दिक्कत ज्यादा और मुनाफा कम है। इस लिये जिस गधेरे ने कोटद्वार में तबाही मचाई भी उसके बजाय अन्य नदियों में खनन की दुधारू गाय बन गयी हैं।