कुंभ के मद्देनजर कोई बजट नहीं मिलने से तीर्थपुरोहितों में खासा रोष
नई टिहरी। तीर्थनगरी देवप्रयाग को आगामी कुंभ के मद्देनजर कोई बजट नहीं दिये जाने से तीर्थपुरोहित समाज में खासा रोष बना हुआ है। तीर्थपुरोहितों का कहना है कि पतित पावनी गंगा देवप्रयाग से ही नाम धारण करती है और गंगा का पहला स्नान यहीं होता है। तीर्थपुरोहित समाज ने षडदर्शन साधु समाज की कुंभ को लेकर की गयी पहल का स्वागत भी किया। षड दर्शन साधु समाज की ओर से आगामी कुंभ में गंगा तीर्थ देवप्रयाग में भी स्नान की व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव पारित किया है। साथ ही कुंभ के दृष्टिगत इस तीर्थ को विकसित किये जाने की मांग सरकार से की गयी है। षडदर्शन साधु समाज ने इस मुद्दे पर सीएम से भी भेंट करने की घोषणा की है। श्री बदरीश युवा पुरोहित संगठन के अनुसार 2005 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देवप्रयाग तीर्थ की महत्ता देख इसको कुंभ मेला क्षेत्र में शामिल किया था। साथ ही यहां श्रद्धालुओं के लिए सभी आवश्यक सुविधाये विकसित करने के लिए दो करोड़ का बजट भी जारी किया था। मगर इस बार सरकार की ओर से देवप्रयाग तीर्थ के लिए आगामी कुंभ के मद्देनजर किसी भी बजट का प्राविधान नहीं किया है। इस संबंध में क्षेत्रीय विधायक विनोद कंडारी की ओर से की गयी किसी पहल की भी कोई जानकारी नहीं है। नगर पालिका अध्यक्ष केके कोटियाल का कहना है कि कुंभ मेले के समय काफी श्रद्धालु देवप्रयाग तीर्थ में भी गंगा स्नान को पहुंचते हैं। प्राचीन काल में पहाड़ के जो श्रद्धालु हरिद्वार तक नहीं जा पाते थे वह देवप्रयाग में ही गंगा स्नान कर पुण्य प्राप्त करते थे। भगवान राम की तपस्थली देवप्रयाग को भारत के 108 दिव्य क्षेत्रों में भी गिना जाता है। मान्यता के अनुसार उत्तराखण्ड के देवी देवता देवप्रयाग में ही गंगा स्नान कर संतुष्ट होते हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार की ओर से आगामी कुंभ मेले में तीर्थनगरी की उपेक्षा से तीर्थपुरोहितो, साधु संतो व क्षेत्र वासियो में रोष गहराया हुआ है।