भगवान कृष्ण ने गोपाष्टमी से प्रारंभ किया था गाय चराना

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गौमाता की आराधना का पर्व है कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी
इस बार 30 अक्टूबर को है भारतीय संस्कृति का प्रमुख पर्व गोपाष्टमी
लेखक, आचार्य रोहित लखेड़ा
माता अद्य मम वय: संपूर्णं जातम्।
बच्छानां न तु गवां चर्यां कर्तुम् इच्छामि।
इस श्लोक के साथ भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन के अगले चरण गोपाल रूप की शुरुआत की। भगवान माता यशोदा से कहते हैं मैया अब मैं बड़ा हो गया हूं, मेरा शरीर बलवान हो चुका है। अब मैं केवल बछड़ों को नहीं, बल्कि गायों को चराने जाना चाहता हूं। कृष्ण के इन शब्दों को सुनकर पहले तो मैया यशोदा ने चिंता जताई, लेकिन जब उन्होंने कृष्ण के दृढ़ निश्चय और स्नेह को देखा, तो उन्हें अनुमित दे दी। इसके बाद नंदबाबा व मैया यशोदा ने शांडिल्य ऋषि से अच्छा मुहूर्त निकलवाया। ऋषि ने जो मुहूर्त निकाला वह था कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी। इसी दिन से भगवान श्री कृष्ण ने गाय चराना प्रारंभ किया और वह गोपाल कहलाए।
वर्ष 2025 में 30 अक्टूबर को गोपाष्टमी है। भारतीय संस्कृति का प्रमुख पर्व गोपाष्टमी गोमाता की विशेष आराधना का दिन है। श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में कथा है कि बालक कृष्ण पहले केवल छोटे बछड़ों हो ही चराते थे। नंद बाबा व मैया यशोदा ने उन्हें बछड़ों को अधिक दूर तक ले जाने की भी अनुमति नहीं दी थी। जब भगवान छह वर्ष की आयु में पहुंचे तो उन्होंने मां यशोदा से गाय चराने की अनुमति मांगी। शांडिल्य ऋषि ने जब गाय चराने का शुभ मुहूर्त निकाला तो भगवान कृष्ण उत्साहित हो गए। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन गाय चुराने से पहले सुबह-सुबह मैया ने कृष्ण को अच्छे से तैयार किया। उन्हें गोप-सखाओं के जैसे वस्त्र पहनाए गए। सिर पर मोर-मुकुट, पैरों में पैजनिया सजाई गई। इसके बाद भगवान कृष्ण ने गाय की प्रदक्षिणा की और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। पास में खड़ी सभी ब्रजवासी भगवान श्रीकृष्ण के इस रूप को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। बलराम व श्री कृष्ण ब्रजवन की ओर प्रस्थान करने लगे।

राधारानी का होता है गोप सखा श्रृगार
एक कथा के अनुसार, राधा रानी, जो सदा श्रीकृष्ण के साथ रहती थी उस दिन उदास हो गई। क्योंकि स्त्रियों को गोचारण करने की अनुमति नहीं थी। राधारानी ने सोचा जब मेरे श्याम गोमाता के साथ वन में जा रहे हैं तो मैं कैसे उनके बिना रहूं। तब राधा रानी ने गोप का वेश धारण किया। बालकों जैसे वस्त्र पहले, सिर पर पगड़ी बांधी और कांधे पर बांसुरी रख ली। इस रूप को धारण कर राधारानी गोप-सखाओं के बीच शामिल होकर भगवान कृष्ण के साथ वन में चली गई। लेकिन, भगवान कृष्ण ने राधारानी को पहचान लिया। यही कारण है कि गोपाष्टमी के दिन ब्रज के मंदिरों में राधारानी का गोप-सखा का श्रृंगार किया जाता है।

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