मोइत्रा बोलीं- विधायी रूप से अनिवार्य विलंब की जगह कार्रवाई की जरूरत,टीएमसी की 37% सांसद महिलाएं
नई दिल्ली, एजेंसी। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने महिला आरक्षण विधेयक को दिखावा करार देते हुए बुधवार को कहा कि इसका नाम बदलकर महिला आरक्षण पुनर्निर्धारण विधेयक किया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया की कि कार्रवाई की जरूरत है, न कि विधायी रूप से अनिवार्य विलंब की।
लोकसभा में विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए मोइत्रा ने कहा कि महिला आरक्षण दो पूरी तरह अनिश्चित तिथियों पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, यह मेरे लिए गर्व और शर्म का विषय है। गर्व यह है कि मैं यहां भारतीय संसद में महिला आरक्षण विधेयक पर बोल रही हूं। मैं अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस से हूं, एक ऐसी पार्टी जिसने अपने सदस्यों में से 37 फीसदी महिलाओं को संसद में भेजा। लेकिन मैं एक ऐसी लोकसभा से हूं, जिसमें कुल मिलाकर केवल 15 फीसदी महिलाएं हैं, जो 26.5 फीसदी के वैश्विक औसत से बहुत कम है और 21 फीसदी के एशियाई क्षेत्रीय औसत से भी नीचे है।
मोइत्रा ने कहा,’जैसे यह सरकार विभिन्न वैश्विक मंचों पर रैंकिंग को लेकर अपनी पीठ थपथपाती है और वैसे ही उसे शर्म से अपना सिर भी झुकाना चाहिए कि भारत महिला आरक्षण के मामले में अंतर संसदीय संघ की तालिका में भारत 196 में से 140वें स्थान पर है।’
तृणमूल कांग्रेस सदस्य ने कहा कि महिला सांसदों में महिलाओं और दलितों का प्रतिनिधित्व लगातार कम रहा है। उन्होंने कहा कि 17वीं लोकसभा में केवल दो मुस्लिम महिला सदस्य हैं और दोनों तृणमूल कांग्रेस से हैं। मोइत्रा ने यह बताते हुए कि आरक्षण जनगणना और उसके बाद परिसीमन की कवायद के बाद ही प्रभावी होगा, कहा, ‘इसका वास्तव में मतलब भाजपा की दोहरी शैली है, वास्तव में हम नहीं जानते कि क्या और कब लोकसभा में 33 फीसदी महिलाएं बैठेंगी क्योंकि अगली जनगणना की तारीख अनिश्चित है और परिसीमन अभ्यास की तारीख दोगुनी अनिश्चित है।
उन्होंने कहा, ‘महिला आरक्षण दो पूरी तरह से अनिश्चित तिथियों पर निर्भर है, क्या इससे बड़ा जुमला हो सकता है। 2024 को भूल जाइए, 2029 में यह संभव नहीं हो सकता है।’ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा करते हुए मोइत्रा ने कहा कि वह इस विधेयक की जननी हैं और उन्होंने मूल विचार को जन्म दिया क्योंकि तृणमूल कांग्रेस की 37 फीसदी सांसद महिलाएं हैं।