नहीं रहे स्वतंत्रता सेनानी मोती सिंह नेगी, भारत छोड़ो आंदोलन में गए थे जेल
रामनगर। आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देने वाले मोती सिंह नेगी का 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। एक माह पहले ही उन्हें अस्वस्थ होने पर अस्पताल भर्ती कराया गया था। उन्होंने अंतिम सांस अपने कोटद्वार रोड स्थित आवास पर ली। उनका दाह संस्कार शनिवार सुबह दस बजे रामनगर श्मशान घाट पर किया जाएगा। वह अपने पीछे तीन पुत्र एक पुत्री के अलावा नाती पोतो से भरापूरा परिवार छोड़ गए है। उनके निधन का समाचार सुनते ही उनके आवास पर श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहा।मूल रूप से जिला अल्मोड़ा के ग्राम कनोली ताड़ीखेत निवासी मोती सिंह नेगी बचपन में ही पढ़ाई-लिखाई छोड़कर अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में कूद गए थे। अंग्रेजी हुकूमत की तमाम यातनाएं झेलीं। घर परिवार छोड़कर जेल में रहे। उस दौरान बापू के साथ पूरा देश खड़ा था। हर किसी में आजादी का जज्बा कूट-कूटकर भरा था। आजादी के दीवानों ने पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था। देश में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गए थे। वह खुद भी रानीखेत से जुलूस के साथ झांसी पहुंच गए। 23 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने लोगों से आंदोलन को अहिंसा से करने की अपील की थी।
झांसी में बड़े नेताओं के नेतृत्व में जुलूस निकाला तो उन्हें व उनके साथियों को झांसी की जेल में बंद कर दिया गया। पकड़े गए लोगों को छोडऩे के लिए माफीनामा लिखने को कहा गया। लेकिन उन्होंने माफीनामा लिखने को मना कर दिया। एक सितंबर 1942 को सभी लोगों को छह माह की सजा सुनाई गई। जेल मे काफी प्रताड़ित किया जाता था। अपराधी व कैदियों की तरह उनके साथ व्यवहार किया गया। इस व्यवहार के विरोध में उन्होंने सात दिन तक खाना नहीं खाया। 27 फरवरी 1942 को वह जेल से छूटकर आए। इसके बाद भी जगह आंदोलन करते रहे।
राष्ट्रपति कर चुकी हैं सम्मानित
वयोवृद्ध मोती सिंह नेगी को वर्ष 2008 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल दिल्ली बुलाकर सम्मानित भी कर चुकी हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी द्वारा उन्हें ताम्रपत्र देकर भी सम्मानित किया गया था।