नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड में नहीं मिली जगहय भाजपा ने अटकलों पर लगाया विराम
नई दिल्ली, एजेंसी। भाजपा ने अपनी सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई यानी संसदीय बोर्ड में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जगह नहीं दी। इससे सियासी अटकले तेज हो गई हैं। हालांकि इन अटकलों पर विराम लगाते हुए भाजपा ने दावा किया कि उसका पुनर्गठित संसदीय बोर्ड पार्टी की संगठनात्मक क्षमता और विविधता का परिचायक है।
रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा सूत्रों ने कहा कि नया पुनर्गठित संसदीय बोर्ड दिखाता है कि पार्टी पुराने कार्यकर्ताओं को कैसे पुरस्त करती है और उनके अनुभव को महत्व देती है। बी़ एस़ येदियुरप्पा , सत्यनारायण जटिया के़ लक्ष्मण जैसे नेताओं ने पार्टी को मौजूदा मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। उनका सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय में शामिल किया जाना दिखाता है कि पार्टी अपने सम्मानित कार्यकर्ताओं को महत्व देती है।
भाजपा सूत्रों ने नवगठित संसदीय बोर्ड के विविधता की ओर इशारा करते हुए कहा कि इसमें विविधता पर जोर दिया गया है। सर्बानंद सोनोवाल पूर्वोत्तर से हैं तो दूसरी ओर एल़ लक्ष्मण और बी़ एस़ येदियुरप्पा दक्षिण से हैं, जबकि इकबाल सिंह लालपुरा एक सिख समुदाय से हैं। सुधा यादव जमीनी नेता हैं जिनके पति कारगिल में शहीद हो गए थे। सुधा यादव को शामिल करना महिलाओं और सशस्त्र बलों के कर्मियों के परिवारों के प्रति उनके अत्यधिक सम्मान को दर्शाता है।
गौरतलब है कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी संगठन की पूरी केंद्रीय टीम बनाने में थोड़ी देर जरूर की लेकिन जब बनाया तो चौंका दिया। पार्टी की शीर्ष नीति निर्णायक इकाई, संसदीय बोर्ड में लगभग उसी तरह भारी बदलाव किया जिस तरह केंद्रीय पदाधिकारियों की नियुक्ति में किया था। पारंपरिक रूप से चल रही अलिखित लाइन से परे हटते हुए संसदीय बोर्ड को बिल्कुल नया रूप दे दिया जिसमें पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी जगह नहीं मिली।
वर्तमान सदस्य और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी बाहर हो गए। जबकि कर्नाटक में भाजपा के बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा, तेलंगाना के पूर्व अध्यक्ष के़ लक्ष्मण, पंजाब के इकबाल सिंह लालपुरा, असम से आनेवाले केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल जैसे लोगों को शामिल कर देश के हर कोने को प्रतिनिधित्व दिया गया। परोक्ष रूप से यह संदेश भी दे दिया गया कि मुख्यमंत्री संसदीय बोर्ड में नहीं होंगे। ऐसी परंपरा कुछ वक्त पहले तक थी।