एक बार फिर राजनीतिक मुद्दा बनकर उभरा, उत्तराखंड में नए जिलों के गठन का मामला
देहरादून। विधानसभा चुनाव नजदीक हैं तो एक बार फिर उत्तराखंड में नए जिलों के गठन का मामला राजनीतिक मुद्दा बनकर उभर गया है। पिछले 10 वर्षों से नए जिलों के गठन को लेकर भाजपा और कांग्रेस लगातार घोषणाएं करते आ रहे हैं, मगर राज्य को बने 21 वर्ष हो गए, नए जिलों के गठन को लेकर गंभीरता किसी पार्टी में नजर नहीं आई।
यूं तो उत्तराखंड में नए जिलों की मांग राज्य गठन के बाद से ही लगातार उठती रही है, मगर सबसे पहले स्वतंत्रता दिवस पर 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डा रमेश पोखरियाल निशंक ने चार नए जिलों के गठन की घोषणा की। तब यमुनोत्री, कोटद्वार, रानीखेत व डीडीहाट को नए जिले बनाने की घोषणा की गई, लेकिन फिर निशंक मुख्यमंत्री पद से हट गए और भुवन चंद्र खंडूड़ी दोबारा मुख्यमंत्री बने। नए जिलों के गठन का शासनादेश भी हुआ लेकिन 2012 में कांग्रेस के सत्ता में आने पर मसला लटक गया।
कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा, मगर उनके लगभग दो साल के कार्यकाल के दौरान इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई। बहुगुणा के उत्तराधिकारी बने हरीश रावत। चुनाव से ठीक पहले हरीश रावत ने नए जिलों के गठन का इरादा जाहिर किया। चार से आगे बढ़कर उन्होंने एकसाथ नौ जिले बनाने की बात कही, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मीडिया में इस तरह के बयान के बाद कांग्रेस ने तब कभी भी नए जिलों के गठन को लेकर आगे बढ़ने की मंशा दिखाई नहीं।
इसी साल विधानसभा सत्र के दौरान नए जिलों कर मामला उठा, मगर सरकार से कोई स्पष्ट जवाब मिला नहीं। अब हाल ही में हरीश रावत ने कहा कि वह मुख्यमंत्री रहते नौ नए जिले बनाने जा रहे थे, लेकिन एक मंत्री के इस्तीफे पर अड़ जाने के कारण वह ऐसा कर नहीं पाए। हालांकि रावत ने बताया नहीं कि इस्तीफे की धमकी देने वाले मंत्री कौन थे। हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कुमाऊं दौरे के दौरान नए जिलों के गठन के लिए पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट की बात कही। इससे एक बार फिर इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में नए जिलों का गठन भी एक बड़ा मुद्दा हो सकता है।
महत्वपूर्ण बात यह कि जनगणना प्रक्रिया के कारण फिलहाल नई प्रशासनिक इकाइयों का गठन मुमकिन नहीं, मगर फिर भी मतदाताओं को लुभाने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल किया जा रहा है। गौरतलब है कि अभी जनगणना प्रकिया जारी है, कोरोना के कारण इसमें विलंब हुआ है। ऐसे में कोई नई प्रशासनिक इकाई नहीं बन सकती। नए जिले भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं।