कष्टकारी हीट वेव
पहाड़ों से लेकर मैदान तक देश भर में गर्मी का प्रकोप इंसानी जीवन पर भी संकट पैदा करने लगा है। देश के अधिकांश हिस्से हीट वेव से जूझ रहे हैं और लोगों का इस भीषण गर्मी में घर से बाहर निकलना भी दुभर हो चुका है। फिलहाल तो प्रतीक्षा की जा रही है मानसून की दस्तक की, लेकिन अभी इसका इंतजार काफी लंबा है। मौसम वैज्ञानिकों की तरफ से भी फिलहाल मानसून को लेकर कोई बहुत अच्छी खबर नहीं मिल रही है। आने वाले कुछ दिनों तक मैदानी इलाकों में हीट वेव से राहत मिलने के आसार नहीं है। मौसम विज्ञान केंद्र की ओर से जारी पूर्वानुमान के अनुसार मैदानी इलाकों में अभी कुछ और दिन तेज धूप और सामान्य तापमान में बढ़ोतरी होने से हीट वेव लोगों को परेशान करेगी। सबसे बड़ी चिंता की बात तो यह है कि उत्तराखंड के पहाड़ भी भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं और यहां भी पहाड़ों जैसा सुकून कहीं नजर नहीं आता। देहरादून का तापमान भी पुराने रिकॉर्ड तोड़ रहा है और पर 40 डिग्री के पार तक पहुंच चुका है। सूरज की लगातार तेज हो रही तपिश अब स्वास्थ्य पर भी काफी प्रभाव डालने लगी है और लू चलने के कारण कई लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। इन परिस्थितियों में यह बेहद जरूरी है कि अति आवश्यक कार्य होने पर ही उचित संसाधनों एवं सावधानी के साथ बाहर निकलना चाहिए ताकि हीट वेव से खुद को बचाया जा सके। उत्तराखंड का बिगड़ा हुआ मौसम का मिजाज एक बड़े चिंता का कारण है क्योंकि मैदाने की तो बात छोड़िए पहाड़ो तक में किस प्रकार से तापमान उछालें भर रहा है वह भविष्य के लिए भी एक खतरे का संकेत है। हालांकि भीषण गर्मी के बीच उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में बारिश भी देखने को मिल रही है लेकिन इसका कोई खास असर मैदानी क्षेत्र में पड़ता हुआ नजर नहीं आ रहा है। ग्रीष्म काल के दौरान बढ़ते पारे के साथ मिजाज बदलने वाला देहरादून भी अब अपने पुराने स्वरूप को खो चुका है। हालत यह है कि राजधानी देहरादून में ही अधिकतम तापमान पिछले 10 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 41 डिग्री तक पहुंच चुका है तो फिर कल्पना की जा सकती है कि मैदानी क्षेत्रों में लोग किस प्रकार से जीवन यापन कर रहे होंगे। चार धाम यात्रियों पर भी सूरज की तपिश सितम भरी गुजर रही है। पर्यावरण विज्ञानियों का मानना है कि नगरों के अनियोजित विकास और वृक्षों की बड़ी संख्या में कटाई होने का परिणाम अब इस भीषण गर्मी के तौर पर उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है। पर्यावरण प्रेमियों की यह चिंता व्यर्थ नहीं है। उदाहरण के तौर पर देहरादून पर ही नजर डालें तो यहां पिछले 20 वर्षों में पर्यावरण में बड़े स्तर पर परिवर्तन देखने को मिला है और जिस गति से यहां वृक्षों को जमींदोज किया गया उसका परिणाम कहीं ना कहीं तो देखने को मिलेगा ही। वर्तमान परिस्थितियों यह बताने के लिए काफी है कि यदि इसी लीक पर चलते रहे तो भविष्य और कष्टकारी साबित होने वाला है।