प्रारम्भिक शिक्षा निदेशक के आदेश से भड़के शिक्षक, कहा हम सही हैं जो फर्जी है उसकी जांच कराएं
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। उत्तराखण्ड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ ने निदेशक प्रारम्भिक शिक्षा के आदेश का विरोध किया है। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि सभी शिक्षक जिन्होंने शैक्षिक और प्रशिक्षैणिक योग्यता के आधार पर विभाग में नौकरी पाई है वह शत प्रतिशत सही है। यदि कोई फर्जी है तो विभाग की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह उनकी जांच करवाएं। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि विभाग शिक्षकों की जांच कराने में असमर्थ है, इसलिए वह अपनी नाकामी का ठीकरा शिक्षकों के ऊपर फोड़ना चाह रहा है, जिसका उत्तराखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ जनपद पौड़ी गढ़वाल पुरजोर विरोध करता है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों के प्रमाण पत्र उप शिक्षा अधिकारी कार्यालय में जमा है, यदि शिक्षक फर्जी हैं तो विभाग सभी प्रमाण पत्रों की जाच स्वयं करवाये। जब अपने शैक्षिक एवं प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों की जांच शिक्षक ने स्वयं करवानी है तो फिर जांच का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है।
उत्तराखण्ड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष मनोज जुगरान ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड द्वारा जनहित याचिका स्टूडेंट गार्जियन टीचर वेलफेयर सोसाइटी बनाम उत्तराखंड राज्य व अन्य के संबंध में 5 अक्टूबर 2020 को आदेश पारित किया गया है कि समस्त प्राथमिक एवं जूनियर शिक्षकों के शैक्षिक एवं प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों की जांच की जानी है। जिसके अनुपालन में समस्त शिक्षकों के द्वारा अपने शैक्षिक एवं प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों की तीन-तीन प्रतियां अपने विकास क्षेत्र के उप शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में जमा करा दिए गए हैं। जिनकी जांच की जिम्मेदारी नियुक्ति अधिकारी जिला शिक्षा अधिकारी (प्रारम्भिक शिक्षा) जनपद एवं निदेशक (प्रारंभिक शिक्षा) की बनती है। जिनको माननीय उच्च न्यायालय में पार्टी बनाया गया है। उन्होंने कहा कि 27 अक्टूबर 2020 निदेशक प्रारंभिक शिक्षा ने तुगलकी फरमान जारी कर शिक्षकों को अपने शैक्षिक एवं प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों की जांच स्वयं कराने का आदेश दिया है। यदि कोई फर्जी प्रमाण पत्रों के सहारे शिक्षा विभाग में नियुक्त पाए हुए हैं तो क्या वह स्वयं की जांच कराके अपने आप को फर्जी साबित करेगा। यह एक हास्यास्पद आदेश है। इस आदेश से जनपद व प्रदेश के समस्त शिक्षकों में रोष व्याप्त है। मनोज जुगरान ने कहा कि इस तुगलकी फरमान के विरोध में प्रदेश के समस्त शिक्षकों को निर्णय लेना चाहिए कि कोई भी अपनी जांच स्वयं नहीं करवाएगा। क्योंकि शिक्षक अलग-अलग बोर्ड, विश्वविद्यालयों के द्वारा शैक्षिक एवं प्रशिक्षण प्रमाण पत्रों की जांच कब तक कराता रहेगा और विश्वविद्यालय और बोर्ड इसके लिए शुल्क निर्धारित करता है। शिक्षक अपनी जेब से भुगतान क्यों करेगा, जबकि वह शत प्रतिशत सही है।