उत्तराखंड विधानसभा चुनाव : विकास से जरूरी हो गई राजनीतिक शुचिता
नागेन्द्र उनियाल
कोटद्वार : मानव की उम्र के हिसाब से युवा दहलीज में प्रवेश कर गए उत्तराखंड राज्य में पिछले 21 वर्षों में विकास की कोई ठोस नीति नहीं बन पाई, लेकिन अमर्यादित और विकास पर भारी पड़ने वाली दलबदल की राजनीति का धरातल जरूर तैयार हो गया है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भूमि, शराब, खनन और दलाली का अवैध व्यवसाय करने वाले आज 21 साल में आर्थिक रूप से इतने ताकतवर हो गए हैं कि बड़े दल के या जीतने वाले प्रत्याशी पर उनका पैसा चुनाव में नंगा नाच कर आम जनता के वोट बटोरने में सक्षम हो गया है। चुनाव जीतने के बाद आपका विधायक इन्हीं माफिया की कठपुतली बन जाता है, इसलिए विकास का आपका सपना साल दर साल दम तोड़ता रहता है।
इसके चलते एक और बुराई अपने उत्तराखंड राज्य में तेजी से फैल रही है। यहां नेताओं की सत्ता पाने की हवस बढ़ती जा रही है, माफिया के चांदी के जूतों की चमक और साल दर साल दफन होते घोटालों से महफूज नेताओं के हर हाल में सत्ता पाने की इस हवस ने प्रदेश की सत्ता को तवायफ समझ लिया है। जिसको पाने की चाहत ने नेताओं को जरूरत से ज्यादा अनैतिक व सिद्धांतहीन बना दिया है। चुनाव के समय दल बदल करने में ये पहाड़ी प्रदेश बिहार, यूपी का रिकॉर्ड तोड़ने जा रहा है, जो कि उत्तराखंड की देवभूमि को शर्मसार कर रहा है।
मैं यह नहीं समझता हूं कि इसके लिए केवल नैतिकहीन नेता ही जिम्मेदार हैं, उत्तराखंड की जनता भी इसके लिए बराबर की दोषी है। कहते हैं कि अपराध को देखकर मौन रहना भी उस अपराध में शामिल माना जाता है। हम अपनी सुख शांति के लिए भले ही पांच साल राजनीतिक अपराधों को सहन करने के लिए विवश हों पर उस जगह पर तो हमारा जमीर जग जाना चाहिए जहां पर हमें राजनीतिक अपराधियों का विरोध करते हुए कोई भी नहीं देख रहा हो, यानि कि वोट डालते समय। वोट एक ऐसा हथियार आपके पास है, जिससे आप अपने प्रदेश की राजनीति में सत्ता को माफिया, दलालों और भ्रष्टाचार की अय्यासी के लिए तवायफ समझने वाले पतित नेताओं पर लगाम लगा कर प्रदेश की राजनीति को एक नया संदेश दे सकते हैं।
उत्तराखंड की भूमि जहां के देवतुल्य मानव की महिमा देश और विदेश में हो, के मतदाताओं को इस चुनाव में गंदे नाले की तरफ बढ़ रही प्रदेश की राजनीति को शुचिता की ओर ले जाने का पर्व आगामी 14 फरवरी को मिला है। यदि आपने अपना मन बना लिया कि हमें मतलबपरस्त और राजनीति को दलदल करने वालों को सबक सिखाना है तो निश्चित रूप से उत्तराखंड की राजनीति में शुचिता आएगी और जब राजनीति स्वच्छ होगी तो सरकार भी स्वच्छ आचरण करेगी। फिर वहां भूमि, वन, खनन और भ्रष्टाचार के माफिया के लिए कोई जगह नहीं होगी। तब उत्तराखंड का समरस विकास के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा, इसी के साथ राजनेताओं के मन में भी भय बना रहेगा कि यदि उन्होंने सत्ता को तवायफ समझने की भूल की तो हस्र 2022 जैसा होगा। आइए इस 2022 के विधानसभा चुनाव को दलबदलूविहीन विधानसभा बनाने का संकल्प लें।