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वंदे भारत सहित 70,000 कोच बनाने वाली फैक्टरी को किनारे लगाने की तैयारी! निजी कंपनी पर भरोसा

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नई दिल्ली, एजेंसी। देश में अपनी स्थापना के 68 गौरवशाली वर्ष पूरे कर चुकी इंटीग्रल कोच फैक्टरी (आईसीएफ) चेन्नई, के कर्मचारियों में बेहद नाराजगी है। वजह, सरकार द्वारा वंदे भारत ट्रेन के ‘स्लीपर सेट्स’ को निजी कंपनी से तैयार कराना है। अहम बात ये है कि निजी कंपनी को आईसीएफ के भीतर ही काम करने की इजाजत दी गई है। एटक और आईसीएफ की ज्वाइंट एक्शन काउंसिल के प्रतिनिधियों का कहना है कि रेल मंत्रालय ने एक निजी कंपनी, टीटागढ़ रेल सिस्टम लिमिटेड के साथ एक समझौता किया है। रेलवे बोर्ड ने उपरोक्त निजी कंपनी को आईसीएफ में मौजूद संयंत्र, मशीनरी व डिजाइन आदि सहित परिसर की सभी सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति दी है। इसके खिलाफ, आईसीएफ ऑल यूनियन ज्वाइंट एक्शन काउंसिल ने आंदोलन शुरू कर दिया है। कर्मियों का कहना है कि वंदे भारत ट्रेन सहित 70,000 कोच तैयार करने वाली फैक्टरी को साइड लाइन करने की तैयारी हो रही है। आखिर सरकार, निजी कंपनी पर भरोसा क्यों जता रही है।
आईसीएफ की ज्वाइंट एक्शन काउंसिल ने 20 सितंबर को फैक्टरी के जीएम के समक्ष अपनी बात रखी है। जीएम को भेजे पत्र में आईसीएफ और उसके कर्मियों के भविष्य को लेकर चिंता जाहिर की गई है। वजह, रेलवे के बड़े नीतिगत निर्णयों में वंदे भारत ट्रेन सेट्स का निर्माण और रखरखाव, इसे प्राइवेट क्षेत्र को सौंपा जा रहा है। आईसीएफ चेन्नई ने इस फैक्टरी ने डिजाइन, गुणवत्ता और संख्यात्मक मामले में खुद को साबित कर दिखाया है। एटक महासचिव अमरजीत कौर ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि रेल कोच निर्माण का निजीकरण, देश हित में नहीं है। इस फैसले को वापस लिया जाना चाहिए। एटक का दृढ़ मत है कि आईसीएफ के परिसर में कोच निर्माण और कोचों के रखरखाव का निजीकरण करना, राष्ट्र हित के खिलाफ है। रेल मंत्रालय द्वारा इस तरह का कदम उठाने के पीछे आईसीएफ प्रबंधन की ओर से यह वजह बताई जा रही है कि मौजूदा मैनपावर के साथ उत्पादन लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता है।
अमरजीत कौर ने कहा, अगर आईसीएफ चेन्नई में विभिन्न श्रेणियों के तहत 1400 से अधिक रिक्तियां हैं, तो उन पदों को भरने की मंजूरी देना रेलवे बोर्ड का काम है। रेलवे बोर्ड और निजी उद्योग के बीच हस्ताक्षरित दस्तावेज बताते हैं कि आईसीएफ की उत्पादन क्षमता से लेकर बाकी सभी सुविधाओं का इस्तेमाल, निजी कंपनी द्वारा किया जाएगा। निजी कंपनी को आईसीएफ डिजाइन और ड्राइंग का उपयोग करने की भी स्वतंत्रता होगी। ऐसे में यह बात समझ से परे है कि रेलवे बोर्ड को आईसीएफ की कीमत पर निजी कॉरपोरेट्स को संरक्षण क्यों देना चाहिए। ऐसा निर्णय लेने से पहले ट्रेड यूनियनों से चर्चा नहीं की गई। एटक मांग करती है कि देशहित में यह फैसला वापस लिया जाए। विनिर्माण प्रणाली और रेलवे कोचों की गुणवत्ता पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। सरकारी स्वामित्व वाले आईसीएफ परिसर के भीतर निजी कंपनी के साथ वंदे भारत ट्रेन सेट के लिए विनिर्माण/रखरखाव समझौते को रद्द किया जाए। इस फैक्टरी ने डिजाइन, गुणवत्ता और संख्यात्मक मामले में खुद को साबित कर दिखाया है। आईसीएफ, अपने मेहनती स्टाफ की वजह से किसी भी बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम है। इसी के चलते आईसीएफ प्रबंधन और रेलवे के साथ कर्मियों का सहयोगी रिश्ता रहा है। इस फैक्टरी ने 70,000 से अधिक कोच बनाए हैं, जो दुनिया में किसी भी रेल कोच निर्माता द्वारा सबसे अधिक हैं।
आईसीएफ ने भारतीय रेलवे के लिए किफायती दरों पर एलएचबी कोच तैयार किए हैं। वर्ष 2019-20 के दौरान आईसीएफ ने 3419 एलएचबी कोच बनाने का उच्च स्तर हासिल किया है। इसके अलावा आईसीएफ में डीएमयू, ईएमयू, मेमू कोच और विस्टाडोम कोच भी तैयार किए हैं। कोलकाता मेट्रो के लिए भी आईसीएफ ने ही कोच तैयार किए थे। साथ ही 15 देशों में 850 कोच निर्यात किए गए हैं। आईसीएफ ने स्वदेशी तकनीक से वंदे भारत ट्रेन सैट्स का मॉडल तैयार करने में सफलता हासिल की थी। ज्वाइंट एक्शन काउंसिल का कहना है कि ये सफलता दिखाती है कि आईसीएफ ने खुद को तकनीक एवं कार्यप्रणाली के मोर्चे पर सदैव अपडेट रखा है। आईसीएफ, स्व-चालित कोचों के निर्माण में अग्रणी है। देश में ईएमयू, मेमू, स्पार्ट, ओएचई टावर कार, स्पिक और डेमू भी इस फैक्टरी द्वारा तैयार हो रहे हैं। 2018-19 में, इस फैक्टरी ने भारत का पहला सेमी हाई स्पीड ट्रेन सेट बनाकर एक बड़ी छलांग लगाई। वंदे भारत एक्सप्रेस, जिसे प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नई दिल्ली से वाराणसी के लिए हरी झंडी दिखाई गई, यह रैक आईसीएफ द्वारा तैयार किया गया। वंदे भारत एक्सप्रेस का दूसरा रेक भी मई, 2019 के दौरान आईसीएफ ने ही तैयार किया था। मेक इन इंडिया परियोजना के तहत आईसीएफ द्वारा निर्मित 80 प्रतिशत स्वदेशी इनपुट के साथ 16 कोच वाली सेमी-हाई स्पीड ट्रेन सेट में 16 कोच होते हैं। बेहतर सुविधाओं के साथ वंदे भारत एक्सप्रेस रेक का संस्करण 2.0 आईसीएफ में शुरू किया गया था।
आईसीएफ द्वारा फाइनल किए गए डिजाइन को आरडीएसओ ने पास किया है। वंदे भारत ट्रेन के नए सेट, जो 180 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार पर दौड़ेगा, उसकी टेस्टिंग हो चुकी है। दूसरी तरफ प्राइवेट क्षेत्र की कंपनी इस तरह का कोई नया बदलाव नहीं कर रही हैं। अगर सौ फीसदी स्वदेशी तरीके से वंदे भारत ट्रेन के 16 रैकों में से एक रैक तैयार करना है, तो उसके लिए आईसीएफ को 182 डायरेक्ट तकनीशियन, 27 सहयोगी स्टाफ और 18 तकनीशियन सुपरवाइजर, कुल मिलाकर 227 ग्रुप सी कर्मचारी चाहिएं। आईसीएफ में एक सितंबर 2022 की स्थिति के अनुसार 1419 पद रिक्त हैं। ये रिक्तियां कुल संख्या का 22.2 प्रतिशत हैं। हेल्पर वर्ग में भी करीब छह सौ पद, कई वर्षों से नहीं भरे गए।
ज्वाइंट एक्शन काउंसिल के मुताबिक, रेल मंत्री ने 28 जुलाई 2023 को संसद में बताया था कि भारतीय रेलवे के नेटवर्क पर 50 वंदे भारत ट्रेन की सर्विसेज जारी है। इन सेवाओं पर कुल 1343.72 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। वंदे भारत ट्रेन के 25 रैकों में 14, सोलह कार रैक और 11, आठ कार रैक शामिल हैं। एक वंदे भारत, 16 कार रैक पर 70 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। यह खर्च प्राइवेट कंपनी से रैक खरीदने ‘120 करोड़ रुपये’ की तुलना में काफी कम है। अब आईसीएफ का संस्थागत ढांचा जैसे फैक्टरी शेड, न्यू व्हील लाइन, पेंट बूथ, कमीशनिंग शेड, ईओटी क्रेन, दिन प्रतिदिन के काम के लिए स्टोर, बिजली सप्लाई, निशुल्क कम्प्रेस्ड एयर व पानी, कंटीन सुविधा, विशेष तकनीशियन, और टेकनीकल सुपरवाइजर एवं अन्य सुविधाओं का इस्तेमाल प्राइवेट कंपनी द्वारा किया जाएगा। इस दौरान आईसीएफ की स्टाफ संख्या को 16 हजार से 10 हजार रुपये पर लाया जा सकता है।

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