राजनाथ सिंह ने एससीओ शिखर सम्मेलन में साझा बयान दस्तावेज पर हस्ताक्षर से इंकार किया

Spread the love

नईदिल्ली, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को चीन में हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की रक्षा मंत्रियों की बैठक में साक्षा बयान पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। दरअसल, सिंह ने बैठक में पहलगाम और आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर बात की, जिससे पाकिस्तान और चीन बचना चाह रहे थे। बैठक के बाद सिंह को आतंकवाद को लेकर साक्षा बयान पर हस्ताक्षर करना था, लेकिन इससे आतंकवाद पर भारत का रुख कमजोर होता, इसलिए उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए।
रिपोर्ट के मुताबिक, एससीओ रक्षा मंत्रियों के साझा बयान में पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र नहीं किया गया है, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटकों को 22 अप्रैल को गोली मारी गई थी। इसके बजाय बयान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान का नाम शामिल किया गया है, जहां पाकिस्तान लगातार भारत पर अशांति फैलाने का आरोप लगाता है। चर्चा है कि पाकिस्तान के कहने पर उसके मित्र देश चीन ने मेजबान देश होने के नाते पहलगाम घटना को दस्तावेज से बाहर किया है।
सिंह ने एससीओ बैठक में चीन और रूस के रक्षा मंत्रियों से द्विपक्षीय मुलाकात की है, जबकि उनकी पाकिस्तान से कोई बातचीत नहीं हुई। यहां तक ख्वाजा आसिफ से नमस्कार भी नहीं हुआ। भारत ने पहले ही स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान से आतंकवाद के मुद्दे पर ही बातचीत होगी। 2001 में स्थापित एससीओ का उद्देश्य सहयोग के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना है। इसमें भारत, चीन, बेलारूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान शामिल हैं।
रक्षा मंत्रालय ने एक्स पर सिंह के दौरे को लेकर लिखा, किंगदाओ में एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में राजनाथ सिंह ने आतंकवाद, कट्टरपंथ और उग्रवाद के खिलाफ एकजुट वैश्विक कार्रवाई का आह्वान किया और उन्हें क्षेत्रीय शांति और विश्वास के लिए बड़ा खतरा बताया। उन्होंने एससीओ देशों से दोहरे मापदंड को अस्वीकार करने और आतंकवाद के प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने का आग्रह किया। उन्होंने भारत की शून्य-सहिष्णुता नीति की पुष्टि कर कहा, आतंकवाद के केंद्र अब सुरक्षित नहीं हैं।
सिंह ने अपने संबोधन के दौरान एससीओ संगठन से जुड़े क्षेत्रों में शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा, हमारे क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से जुड़ी हैं। इन समस्याओं का मूल कारण कट्टरपंथ, उग्रवाद और आतंकवाद में वृद्धि है। शांति-समृद्धि आतंकवाद और सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार के साथ सह-अस्तित्व में नहीं रह सकती। इन चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *