पर्वतीय कृषकों के अधिकारों को मिली नई पहचान
अल्मोड़ा( उत्तराखंड की कृषि विविधता न केवल इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि स्थानीय आजीविका, पोषण और पारंपरिक अनुकूलन का आधार भी रही है। धान हमेशा से यहां की पारंपरिक कृषि व्यवस्था का अहम हिस्सा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित की जा रही धान की कई प्रजातियां न केवल स्थानीय जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विकसित हुई हैं, बल्कि पोषण, स्वाद और सांस्कृतिक महत्व के लिहाज से भी बेहद खास मानी जाती हैं। हालांकि, आधुनिक कृषि पद्धतियों और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से ये प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त होने लगी थीं। इसी परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण पहल के तहत पारंपरिक धान प्रजातियों ‘रामणा लाल’ और ‘बौराणी’ को भारत सरकार के पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली द्वारा 4 अगस्त 2025 को औपचारिक रूप से कृषक किस्म के रूप में पंजीकृत किया गया है। इन प्रजातियों को अल्मोड़ा जनपद के ग्राम गल्ली-बस्यूरा निवासी भूपेंद्र जोशी ने गैरसरकारी संस्था लोक चेतना मंच, रानीखेत के माध्यम से प्रस्तुत किया था। ‘रामणा लाल’ और ‘बौराणी’ धान दोनों ही वर्षा आधारित खेती और उर्वर भूमि के लिए उपयुक्त पारंपरिक प्रजातियां हैं। ये लगभग 80 से 85 दिनों में फूलने और 110 से 115 दिनों में पकने वाली किस्में हैं, जो ब्लास्ट रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोध क्षमता प्रदर्शित करती हैं। बौराणी धान का दाना सफेद रंग का, अपेक्षाकृत बड़ा (लंबाई 6.24 मिमी, चौड़ाई 2.22 मिमी, 100 दाना वजन 2.49 ग्राम) होता है, जबकि रामणा लाल धान का दाना हल्के लाल-भूरे रंग का (लंबाई 5.84 मिमी, चौड़ाई 2.38 मिमी, 100 दाना वजन 2.6 ग्राम) है। भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के निदेशक डॉ. लक्ष्मीकांत के नेतृत्व में वरिष्ठ वैज्ञानिक अनुराधा भारतीय, लोक चेतना मंच के अध्यक्ष जोगेंद्र बिष्ट और पंकज चौहान ने इन प्रजातियों के संरक्षण और पंजीकरण की दिशा में अहम भूमिका निभाई। इस पंजीकरण से संबंधित कृषकों को इन प्रजातियों के उत्पादन और विपणन के विशेषाधिकार प्राप्त होंगे। साथ ही, यदि भविष्य में इन किस्मों का उपयोग किसी नई प्रजाति के विकास में किया जाता है, तो किसानों को लाभ साझेदारी और क्षतिपूर्ति का भी वैधानिक अधिकार मिलेगा। ‘रामणा लाल’ और ‘बौराणी’ धान का यह पंजीकरण पारंपरिक कृषि धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम माना जा रहा है, जो पर्वतीय कृषकों के ज्ञान, मेहनत और अधिकारों को सम्मान देने के साथ-साथ उनकी आजीविका को भी नई पहचान प्रदान करेगा।