उत्तराखंड

बोल बम के जयघोष से गूंजने लगी ऋषिनगरी

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ऋषिकेश। श्रावण मास की कांवड़ यात्रा के चलते ऋषिनगरी बम भोले के उद्धोष से गूंजने लगी है। कांवड़ियों की संख्या बढ़ने से ऋषिनगरी अब भगवा रंग में रंगी नजर आने लगी है। शनिवार को नीलकंठ पैदल एवं मोटरमार्ग से कांवड़िये जलाभिषेक को जाते दिखे। श्रावण मास के पहले सोमवार के जलाभिषेक के लिए रविवार से कांवड़ियों की संख्या में इजाफा होगा। शनिवार को बड़ी संख्या में शिवभक्तों ने नीलकंठ महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया।
महाआरती के बाद शुरू हुआ जलाभिषेक: शनिवार को कांवड़ यात्रियों का रेला नीलकंठ महादेव मंदिर की ओर बढ़ता नजर आया। खासकर स्वर्गाश्रम-लक्ष्मणझूला क्षेत्र कांवड़ियों से अटा रहा। नीलकंठ मंदिर में पहले सोमवार के जलाभिषेक के लिये कांवड़ियों ने क्षेत्र में ही डेरा डालना शुरू कर दिया है। रविवार मध्यरात्रि को नीलकंठ महादेव में शिवलिंग का विशेष अभिषेक और महाआरती का आयोजन होगा, जिसके बाद मंदिर में जलाभिषेक शुरू हो जायेगा। पहले सोमवार पर प्रशासन दो लाख से अधिक शिवभक्तों के नीलकंठ मंदिर में जलाभिषेक करने का दावा किया है। शनिवार को ऋषिकेश, मुनिकीरेती, स्वर्गाश्रम, लक्ष्मणझूला में बड़ी संख्या में कांवडिए दिखे, जिसके चलते रामझूला,जानकीझूला पुल पर शिवभक्तों का दबाव रहा। नीलकंठ कांवड़ यात्रा में आस्था के कई रूप देखने को मिल रहे है। कोई शिवभक्त नंगे पांव तो कोई लेटकर दंडवत होकर मंदिर जा रहा है। एसएसपी पौड़ी लोकेश्वर सिंह का कहना है कि कांवड़ियों के नीलकंठ महादेव मंदिर पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। पहले सोमवार को बड़ी संख्या में कांवडिए जलाभिषेक करेंगे। जिसके चलते कांवड़ियों ने क्षेत्र में ही डेरा डालना शुरू कर दिया है। अब पैदल एवं मोटर मार्ग से दिनरात कांवड़ियों के जलाभिषेक को आने जाने का सिलसिला शुरू होगा। इसलिए सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किये गये हैं।
नीलकंठ मंदिर का पौराणिक इतिहास
नीलकंठ महादेव मंदिर जनपद पौड़ी के यमकेश्वर विकासखंड के गांव पुण्डारस्यूं पट्टी तल्ला उदयपुर में स्थित है। मंदिर पहुंचने के लिये 12 किलोमीटर पैदलमार्ग एवं 35 किलोमीटर मोटरमार्ग से पहुंचा जा सकता है। मणिकूट पर्वत की तलहटी पर स्थित मंदिर के बारे में ज्योतिष कैलाश घिल्डियाल बताते है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष कालकूट को पी लिया था। भोलेनाथ ने अपनी शक्ति के प्रभाव से उस विष को अपने कंठ तक ही सीमित रखा और अपने गले से नीचे नहीं जाने दिया। इसलिये उन्हें नीकंठ महादेव कहा गया। ज्योतिष बताते है कि विष ग्रहण करने के बाद भोलेनाथ ऐसे स्थान की तलाश में थे,जहां उन्हें शीतल हवा मिले। वह घूमते हुये मणिकूट पर्वत पहुंच गये। जहां उन्हें शीतलता मिली। मान्यता है कि करीब 60हजार साल इसी स्थान पर रहे। इसलिये इस स्थान को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है।

 

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