समय-समय पर आरक्षण के मूल्याकंन की सख्त जरूरत
जयन्त प्रतिनिधि।
श्रीनगर गढ़वाल। भारत में सामाजिक न्याय को स्थापित करने में आरक्षण की भूमिका विषय पर बिड़ला परिसर में राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से एक दिवसीय परिचर्चा का ऑनलाइन आयोजन किया गया।
राजनीति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. आरएन गैरोला ने कहा कि सामाजिक न्याय की यह अवधारणा संविधान का पहला कर्तव्य और समाज की पहली जरूरत भी है। जब तक सही अर्थ में सामाजिक समता की स्थापना नहीं हो जाती है तब तक आरक्षण का प्रावधान बना रहना चाहिए, लेकिन समय-समय पर इसके मूल्यांकन की सख्त जरूरत भी है। जिससे पात्र व्यक्ति को ही इसका लाभ प्राप्त हो। प्रो. गैरोला ने कहा कि समाज के हाशिए पर खड़े अंतिम व्यक्ति की बेहतरी और उसके आर्थिक उत्थान के लिए ही संविधान में आरक्षण का प्रावधान हुआ है। समय के साथ आरक्षण की बदलती भूमिका और जरूरत के कारण ही अन्य पिछड़ा वर्ग और हाल ही में सामान्य वर्ग के लोगों को भी आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान किया गया। आरक्षण को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने पर भी प्रो. आरएन गैरोला ने गंभीर चिता व्यक्त की। राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. एमएम सेमवाल ने कहा कि सामाजिक न्याय किसी भी दूसरी तरह की न्यायिक अवधारणा से सर्वोच्च है। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए किए गए आरक्षण की साथर्कता तभी सिद्ध हो सकती है जबकि सही जरूरतमंद व्यक्ति को इसका लाभ मिले। शोध छात्र सुशील कुमार ने कहा कि आरक्षण को सामाजिक संदर्भ में व्यापक रूप से देखा जाना चाहिए। शोध छात्र महेश भट्ट परिचर्चा के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। जमुना प्रसाद, सुभाष लाल, देवेंद्र सिंह, विजयमोहन रावत, मनस्वी सेमवाल, लक्ष्मण प्रसाद, शैलजा शोधार्थी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।