संसद के बजट सत्र में कृषि सुधार कानूनों पर आर-पार की लड़ाई के मूड में विपक्षी पार्टियां
नई दिल्ली, एजेंसी। कृषि सुधार कानूनों पर सरकार के कदम पीटे नहीं खींचने के अब तक के संकेतों के आधार पर विपक्षी दलों को चार जनवरी को सरकार और किसान संगठनों के बीच होने वाली बातचीत से ज्यादा उम्मीद नहीं है।
सोमवार की वार्ता में समाधान नहीं निकलने की स्थिति में गणतंत्र दिवस के मौके पर विरोध स्वरूप दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की किसान संगठनों की घोषणा ने विपक्षी दलों की इस आशंका को और बढ़ा दिया है। इसके मद्देनजर ही विपक्षी पार्टियां संसद के आगामी बजट सत्र में षि कानूनों को निरस्त कराने के लिए साझी रणनीति बनाने की कसरत में जुट गई हैं।
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के लगातार गंभीर होते स्वरूप को देखते हुए विपक्षी दलों का साफ मानना है कि अब सरकार पर दोहरा दबाव बनाने का समय आ गया है। इसके लिए जरूरी है कि संसद में कानूनों को निरस्त कराने के लिए विपक्षी दलों की ओर से ठोस विधायी रणनीति बनाई जाए। बताया जाता है कि माकपा नेता सीताराम येचुरी इस मसले पर कांग्रेस समेत कई दलों से बातचीत भी कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को भी साधा जा रहा है।
इतना ही नहीं षि कानूनों का विरोध करने वाले, लेकिन केंद्र सरकार से अच्टे रिश्ते रखने वाले कई दलों से, जिसमें बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस आदि शामिल हैं, समर्थन हासिल करने का भी प्रयास किया जाएगा।
कांग्रेस सूत्रों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि बेशक इन दलों के प्रमुखों से संसद में षि कानूनों को निरस्त करने के विधायी प्रस्तावों पर साथ आने को कहा जाएगा। संसद में सरकार की घेरेबंदी के प्रयासों से यदि ये दल दूरी बनाएंगे तो साफ तौर पर किसानों के सामने बेनकाब होंगे।
विपक्षी खेमे का यह भी मानना है कि चूंकि सरकार कानूनों को वापस लेने के मूड में नहीं है, ऐसे में बजट सत्र ही षि कानूनों के खिलाफ राजनीतिक आर-पार की लड़ाई का मौका होगा। इसके लिए कानून का विरोध करने वाले तमाम दलों को संसद में एकजुट करना अहम रणनीतिक चुनौती है।