शारीरिक शिक्षकों के स्वाभिमान की रक्षा करने की मांग की

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जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। पौड़ी गढ़वाल के शारीरिक शिक्षक सुनील रावत ने शारीरिक शिक्षक को विद्यालय की रीढ़ बताते हुए कहा कि विद्यालय में समय से पहले आकर बच्चों को खेल खिलाना, प्रार्थना करवाना, सामूहिक व्यायाम व योगा करवाना, शारीरिक/मानसिक विकास के साथ-साथ विद्यालय में अनुशासन बनाने और कुशल खिलाड़ियों की पहचान करने के बाद खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देकर संकुल, क्षेत्रीय, जनपद व राज्य स्तर तक प्रतिभाग करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। उन्होंने कहा कि कोई भी पुरस्कार सरकार या विभाग द्वारा प्रोत्साहन के रूप में शारीरिक शिक्षकों को नहीं दिया जाता है। जबकि शारीरिक शिक्षकों की कड़ी मेहनत से ही देश को अच्छे खिलाड़ी मिल पाते है। उन्होंने सरकार से शारीरिक शिक्षकों के मनोनयन पर विचार करने एवं उनके स्वाभिमान की रक्षा करने की मांग की है।
शारीरिक शिक्षक सुनील रावत ने प्रदेश के खिले मंत्री को प्रेषित पत्र में कहा कि उत्तराखण्ड में चार प्रकार के खेलों का आयोजन किया जाता है। जो विद्यालय खेल (एसजीएफआई) कलैण्डर के अनुसार, खेल विभाग, युवा कल्याण और खेल एसोसिएशनों के माध्यम से करवाये जाते है। इन सभी खेलों को सम्पादित करवाने में शारीरिक शिक्षक की अहम भूमिका होती है। चाहे खिलाड़ी को प्रतियोगिता में प्रतिभाग करवाना हो या मैदान तक पहुंचाना हो। इसके अलावा रहने खाने की सारी जिम्मेदारी शारीरिक शिक्षक द्वारा कुशलता के साथ की जाती है। कई शारीरिक शिक्षकों ने समय-समय पर राष्ट्र/अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर कोच और निर्णायक के रूप में भी कार्य किया है। विद्यालयी शिक्षकों ने तो कई बाद एसजीएफआई द्वारा आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया है। उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा ने तीन बार राष्ट्रीय बॉक्ंिसग, एक-एक बार फुटबाल, हैण्ड बॉल, बालीवाल की प्रतियोगिता का आयोजन किया। उन्होंने कहा कि सभी जिम्मेदारियों के बावजूद शारीरिक शिक्षक अपने को असहाय एवं बौना महसूस करता है। द्रोणाचार्य पुरस्कार की बात तो दूर की बात है शैलेश मटियानी जैसे विभागीय पुरस्कारों में भी शारीरिक शिक्षकों को दूर रखा जाता है। उन्होंने कहा कि सिर्फ एक बार वर्ष 2005-06 में तत्कालीन शिक्षा निदेशक एवं राज्य खेल समन्वयक द्वारा उत्कृष्ट शारीरिक शिक्षकों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया गया था।

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