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नामीबिया से कूनो नेशनल पार्क आई मादा चीता साशा की मौत, किडनी इन्फेक्शन हुआ था

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श्योपुर । भारत में चीतों को बसाने के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को बड़ा झटका लगा है। नामीबिया से आई फीमेल चीता साशा सोमवार सुबह कूनो नेशनल पार्क स्थित अपने बाड़े में मृत मिली है। उसकी किडनी खराब थी और उसका इलाज चल रहा था। इस खबर ने देश में फिर से चीतों को बसाने की इच्छा रखने वाले वन्यजीव प्रेमियों की उम्मीदों को पस्त कर दिया है।
मादा चीता साशा में 22-23 जनवरी को बीमार होने के लक्षण पता चले थे। इसके बाद उसे बड़े बाड़े से छोटे बाड़े में शिफ्ट किया गया। तब उसका इलाज करने के लिए वन विभाग ने इमरजेंसी मेडिकल रिस्पॉन्स टीम को कूनो भेजा था। शुरुआती लक्षणों में डीहाइड्रेशन और किडनी की बीमारी का पता चला था। साशा को बचाने के लिए वन विहार नेशनल पार्क से डॉ. अतुल गुप्ता को भी भेजा गया था। विशेषज्ञों ने उसे फ्लुइड चढ़ाया था, जिससे साशा की तबियत में सुधार भी दिखा था। विशेषज्ञों का कहना है कि चीतों में किडनी की बीमारी होना सामान्य बात है। इसे प्रोजेक्ट चीता को झटके के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।
साशा को सात अन्य चीतों के साथ नामीबिया से लाया गया था। पिछले साल 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर इन चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। यह 70 साल बाद पहला मौका था, जब कोई चीता भारतीय धरती पर खुले में घूम रहा था। इस जत्थे में आठ चीते थे, जिन्हें मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था। इसके बाद फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों का दूसरा जत्था भारत लाया गया है। इन 12 चीतों में सात नर और पांच मादा शामिल थीं। इन्हें फिलहाल कूनो नेशनल पार्क के क्वारंटाइन बाड़े में रखा गया है। वन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह सामान्य है। वह बीमार थी। उसे बचाने के लिए कोशिश की गई। इसके बाद भी हम उसे बचा नहीं सके। नामीबिया से एक्सपट्र्स भी हमारी मदद कर रहे थे। वह पहले दिन से ही कमजोर थी।
22 जनवरी को नामीबिया से लाकर कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ी गई मादा चीता साशा को मॉनीटरिंग टीम ने उसे सुस्त पाया था। चीतों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए तैनात तीन पशु चिकित्सकों ने साशा की स्वास्थ्य जांच की। यह पाया कि उसे उपचार की आवश्यकता है। उसी दिन उसे क्वारेंटाइन बाड़े में लाया गया। क्वारेंटाइन बाड़े में लाने की प्रक्रिया में साशा का ब्लड सैम्पल भी लिया गया। इसका परीक्षण वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में स्थित लैब में अत्याधुनिक मशीनों से किया गया। खून के नमूने की जांच से पता चला कि साशा को किडनी में संक्रमण है। वन विहार भोपाल से वन्यप्राणी चिकित्सक एवं एक अन्य विशेषज्ञ चिकित्सक को पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन के साथ कूनो राष्ट्रीय उद्यान भेजा गया। साशा के परीक्षण से किडनी की बीमारी की पुष्टि हुई।
वन विभाग का कहना है कि भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और कूनो राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन ने चीता कंजर्वेशन फाउंडेशन, नामीबिया से साशा की ट्रीटमेंट हिस्ट्री मंगाई थी। पता चला कि 15 अगस्त 2022 को नामीबिया में किए गए अंतिम खून के नमूने की जांच में क्रियेटिनिन का स्तर 400 से अधिक पाया गया था। इससे यह पुष्टि भी होती है कि साशा को किडनी की बीमारी भारत आने से पहले से ही थी।
भारत में 70 साल बाद चीतों को बसाने के प्रोजेक्ट चीता के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन 17 सितंबर को नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को रिलीज किया था। इन चीतों को पहले तो एक से डेढ़ महीने तक छोटे क्वारंटाइन बाड़ों में रखा गया। वहां उन्हें भैंसे का मीट खिलाया गया। फिर एक-एक कर इन चीतों को बड़े बाड़े में छोड़ा गया, जहां उनके खाने के लिए चीतल जैसे जानवरों को छोड़ा गया था। नामीबिया से लाए गए सात अन्य चीता स्वस्थ हैं। इनमें तीन नर और एक मादा खुले जंगल में छोड़े गए हैं। वह पूरी तरह से सक्रिय और स्वस्थ हैं। सामान्य रूप से शिकार कर रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीता वर्तमान में क्वारेंटाइन बाड़ों में हैं और पूरी तरह स्वस्थ और सक्रिय हैं।
22 जनवरी से साशा की मृत्यु की दिनांक तक कूनो राष्ट्रीय उद्यान में पदस्थ सभी वन्यप्राणी चिकित्सकों और नामीबिया के विशेषज्ञ डॉ. इलाई वॉकर ने रात-दिन मेहनत की। साशा का उपचार किया। उपचार के दौरान लगातार चीता कंजर्वेशन फाउंडेशन, नामीबिया और प्रिटोरिया विश्वविद्यालय दक्षिण अफ्रीका के विशेषज्ञ डॉ. एड्रियन टोर्डिफ से लगातार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और टेलीफोन के जरिये संपर्क में रहे। 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से भारत लाए गए 12 चीतों के साथ आए वेटरनरी विशेषज्ञ डॉ. लॉरी मार्कर, डॉ. एड्रियन टोर्डिफ, डॉ. एंडी फ्रेजर, डॉ. माइक तथा फिन्डा रिजर्व के वरिष्ठ प्रबंधक से भी साशा के इलाज पर विस्तार से चर्चा की गई है। दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञों ने तो इस बात की तारीफ की कि साशा को इतनी गंभीर बीमारी होने के बाद भी उसकी अच्छे-से देखभाल की गई।

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