प्रदेश में आपदाओं की घटनाओं को लेकर वैज्ञानिक चिंतित

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– वैज्ञानिकों ने दून लाइब्रेरी, रिसर्च सेंटर और SPECS ने संयुक्त रूप से सेंट्रल हिमालय में आ रही लगातार आपदाओं पर चर्चा की
देहरादून(। उत्तराखंड इन दिनों आपदाओं से जूझ रहा है। आये दिन प्रदेश के किसी न किसी क्षेत्र में इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रदेश में आपदाओं की घटनाओं को लेकर वैज्ञानिकों चिंतित हैं। इसे लेकर वैज्ञानिकों ने दून लाइब्रेरी, रिसर्च सेंटर और SPECS ने संयुक्त रूप से सेंट्रल हिमालय में आ रही लगातार आपदाओं पर चर्चा की। जिसके केंद्र बिंदु में धारली आपदा थी। चर्चा के बाद इसके निष्कर्ष को सरकार से भी साझा किया जाएगा। दून लाइब्रेरी रिसर्च सेंटर और SPECS (सोसाइटी ऑफ़ पोल्लुशन एंड एनवायर्नमेंटल कंज़र्वेशन साइंटिस्ट्स) ने मिलकर दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर के सभागार में “धाराली फ्लैश फ्लड–टाइमलाइन में एक और आपदा” विषय पर एक विशेष चर्चा “दि देहरादून डायलॉग (TDD) सीरीज़” की। इसके अंतर्गत विज्ञान, समाज, नीतियों और विकास से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर संवाद स्थापित करने की एक नई पहल के रूप में शुरुआत की गई। इस पूरे डिस्कशन से निकलने वाले निष्कर्ष को राज्य सरकार और विकास योजना बनाने वाले विभागों और नीति-निर्माताओं तक पहुचाया जाएगा। जिससे शोधकर्ताओं के अनुभव टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट और भविष्य में इस तरह के खतरों के लिए प्रिवेंशन अपनाया जाये।

देहरादून दून लाइब्रेरी रिसर्च सेंटर में चले इस सेमिनार में दून लाइब्रेरी, रिसर्च सेंटर (DLRC) के चन्द्रशेखर तिवारी ने कार्यक्रम में आए सभी वरिष्ठ शोधकर्ताओं वैज्ञानिकों अधिकारियों, रिसर्च स्कॉलर के अलावा स्कूली छात्राओं का स्वागत किया। इसके बाद द देहरादून डायलॉग (TDD) की ओर से डॉ। दिनेश सती का परिचय देते हुए उन्हें मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया। बता दें डॉ० दिनेश सती को फील्ड जियोलॉजी (क्षेत्रीय भूविज्ञान) में 43 वर्षों का अनुभव है। वे वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG), सागर विश्वविद्यालय, केडीएमआईपीई-ओएनजीसी तथा सीआरआरआई- नई दिल्ली जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े रहे हैं। संरचना एवं टेक्टोनिक्स, भू-स्खलन, हाइड्रोजियोलॉजी और इंजीनियरिंग जियोलॉजी में उनका गहन अनुभव है। उन्होंने नेपाल और भूटान सहित पूरे हिमालय में विस्तृत फील्ड अध्ययन किया है।

“धाराली फ्लैश फ्लड में निर्दोष जीवन की क्षति और भारी संपत्ति के नुकसान पर हम सभी शोक व्यक्त करते हैं, परंतु यह आपदा अप्रत्याशित नहीं थी। लगभग हर वर्ष मानसून के समय हिमालयी क्षेत्रों में इस प्रकार की आपदाएं होती हैं। – डॉ० दिनेश सती, फील्ड जियोलॉजी (क्षेत्रीय भूविज्ञान)”

डा. सती ने उपग्रह आंकड़ों के माध्यम से भूमि-आकृतियों की अस्थिरता को मापने और विभिन्न वर्षा-आधारित आंकड़ों से हैज़र्ड मॉडलिंग करने की प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने धाराली क्षेत्र की पिछली आपदाओं की टाइमलाइन दी। जिसमें 1835, 1978, 2010, 2012, 2013, 2015 तथा 2018 की बाढ़, क्लाउडबर्स्ट की घटनाओं का विवरण दिया.

“खीरगंगा बेसिन की भौगोलिक व भौतिक संरचना इस प्रकार की घटनाओं को जन्म देती है। प्राथमिक स्तर पर उपग्रह डेटा से ही अस्थिर सामग्रियों (morains, colluvium आदि) की पहचान की जा सकती है। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि असुरक्षित क्षेत्रों में भवन निर्माण व होटल व्यवसाय बिना किसी रोक-टोक के चलते रहे। आपदा प्रबंधन के लिए बनाई गई संस्थाएं जैसे USDMA एवं USAC को अग्रिम चेतावनी देने की दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए थी, किंतु प्रायः वे केवल आपदा घटित होने के बाद ही दिखाई देती हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि राहत एवं पुनर्वास के साथ-साथ अब रोकथाम एवं पूर्व-योजना पर भी कार्य करने की आवश्यकता है। – डॉ० दिनेश सती, फील्ड जियोलॉजी (क्षेत्रीय भूविज्ञान)”

निष्कर्ष:
*धाराली जैसी आपदाएँ अप्रत्याशित नहीं हैं, इनकी पूर्व पहचान एवं तैयारी संभव है।
*सीमित संसाधनों के कारण जनसंख्या दबाव से लोग संवेदनशील क्षेत्रों में बस रहे हैं।
*ग्लोबल क्लाइमेट चेंज के कारण जोखिम और बढ़ गए हैं।
*हिमालयी बेसिन की अस्थिर भूमि-आकृतियों को उपग्रह आंकड़ों से पहचाना जा सकता है।
*वर्षा आंकड़ों के आधार पर मॉडलिंग कर, विकास कार्यों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

सरकार को सौंपें जाएंगे सुझाव: कार्यक्रम के बाद डॉ० बृज मोहन शर्मा ने बताया सेंट्रल हिमालय में लगातार बढ़ रही आपदाओं को लेकर साइंस कम्युनिटी बेहद संवेदनशील है। इसका एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड के लिए चुनौती बना हुआ है। उन्होंने बताया इस तरह के विचार विमर्श से कई जानकारी के साथ-साथ खास तौर से गवर्नमेंट पॉलिसीज की कमियां उजागर होती हैं। उनमें सुधार की संभावनाएं खुलती हैं। ऐसे में उनका प्रयास रहेगा की इस तरह के पैनल डिस्कशन से निकलने वाले निष्कर्ष या फिर सुझावों को सरकार तक पहुंचाया जाए.
चर्चा में शामिल हुए बड़े नाम: सेंट्रल हिमालय (उत्तराखंड) में आपदाओं को लेकर हुये डिस्कशन में कई जाने-माने वैज्ञानिक और सामाजिक लोग भी मौजूद रहे। जिनमें बलेंदु जोशी, विभा पुरी दास, आर। के. मुखर्जी, जयराज, सुशील त्यागी, रानू बिष्ट, राजीव ओबेरॉय, डॉ० डीपी. डोभाल, डॉ० दीपक भट्ट, कुसुम रावत, अतुल शर्मा, देवेंद्र बुडाकोटी, कर्नल अमित अग्रवाल, डॉ० अनिल जागी, भूमेंश भारती, नीरज उनियाल, चन्द्र स्वामी आदि मौजूद रहे।

 

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