पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन से विलुप्त के कगार पर गौरैया

Spread the love

चमोली : पीजी कॉलेज कर्णप्रयाग में विश्व गौरैया दिवस पर भूगोल विभाग की ओर से व्याख्यान, भाषण एंव निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में सुहानी प्रथम और रोशनी द्वितीय, भाषण प्रतियोगिता मे अंकित कुमार प्रथम, निलाक्षी द्वितीय स्थान पर रही। इस अवसर पर डॉ. नरेंद्र पंघाल ने कहा कि पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन से आज गौरैया पक्षी विलुप्त हो रही है। हमें इसके संरक्षण के लिए आगे आना होगा। डॉ. आरसी भट्ट ने कहा कि विश्व गौरैया दिवस का मकसद इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है। उत्तराखंड में चिड़ियाओं की करीब 700 प्रजातियां हैं। गौरैया ग्रामीण एंव शहरी क्षेत्रों में दिखाई देती हैं, लेकिन अब इनकी संख्या कम हो गई हैं। इनके वास स्थल कम हुए है। गौरैया घरेलू और पालतू पक्षी है। बढ़ते रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग गौरैया के भोजन की चिन्ता बन गई हैं। यह पक्षी विश्व में तेजी से दुर्लभ हो रही है। पहले बड़ी हवेलियों और घरों में रोशनदान माले और लकड़ा के टांड होते थे। जिनमें गौरैया अपने घोंसले बनाती थी। समय परिवर्तन के साथ नए मकान बनते गए उससे गौरैया को घोंसले बनाने मे परेशानी हुई हैं। डॉ. बीसीएस नेगी ने कहा कि गौरैया की लगातार घटती संख्या एक चिन्ता का कारण बन गया है। डॉ. नेहा तिवारी ने कहा कि बढ़ती आबादी के साथ गौरैया विलुप्त होती जा रही है। (एजेंसी)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *