श्रीलंका की संसद 1978 के बाद पहली बार करेगी अगले राष्ट्रपति का चुनाव, रानिल विक्रमसिंघे हैं रेस में सबसे आगे
कोलंबो, एजेंसी। अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका के पास अब राजनीतिक संकट भी गहरा गया है। 1978 के बाद पहली बार श्रीलंका में अगले राष्ट्रपति का चुनाव सांसदों द्वारा गुप्त वोटिंग के माध्यम से किया जाएगा। न कि इस बार श्रीलंका में राष्ट्रपति का चुनाव जनादेश के माध्यम से होगा। देश में भारी विद्रोह के चलते गोटाबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफे दे दिया है।
श्रीलंका में राजनीतिक स्थिरता लाने के लिए स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्धने ने शुक्रवार को कहा कि 225 सदस्यीय संसद 20 जुलाई को गुप्त वोट से नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगी। देश के नए राष्ट्रपति नवंबर 2024 तक गोटबाया राजपक्षे के शेष कार्यकाल की सेवा करेंगे।
बता दें कि 1978 के बाद से राष्ट्रपति पद के इतिहास में कभी भी संसद ने राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान नहीं किया था। 1982, 1988, 1994, 1999, 2005, 2010, 2015 और 2019 के राष्ट्रपति चुनावों ने उन्हें लोकप्रिय जनता के वोट से चुना गया था।
एक बार 1993 में जब श्रीलंका के राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी गई थी। प्रेमदासा के कार्यकाल के संतुलन को चलाने के लिए संसद द्वारा डीबी विजेतुंगा को सर्वसम्मति से समर्थन दिया गया था।
वहीं, श्रीलंका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की रेस की दौड़ में सबसे आगे 73 वर्षीय रानिल विक्रमसिंघे हैं। मई में इन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया था। तब से उन्होंने अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहे देश की कमान संभाली है।
अपनी खुद की संसदीय संख्या के बिना विक्रमसिंघे पूरी तरह से सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के सदस्य वोट पर निर्भर होंगे। उनके समर्थन का पूर्वाभास नहीं है क्योंकि एसएलपीपी वैचारिक रूप से उनके खिलाफ है। राष्ट्रपति पद की दौड़ में मुख्य दावेदार विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा हो सकते हैं।
55 साल की उम्र में विक्रमसिंघे लंबे समय तक अपने पूर्व नेता पर पलटवार करते रहे हैं। उनकी नवगठित एसजेबी ने की भव्य पुरानी पार्टी को बेदखल कर दिया था। विक्रमसिंघे 2020 में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरें हैं।