सुप्रीम कोर्ट की सख्ती : तमिलनाडु में 10 बिलों को रोकना अवैध, राज्यपाल को दी नसीहत, संविधान से चलें, न कि पार्टियों की मर्जी से

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नई दिल्ली , तमिलनाडु सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार के 10 अहम विधेयकों को राज्यपाल आरएन रवि द्वारा रोके जाने को अवैध करार दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल की यह कार्रवाई मनमानी और संविधान के विरुद्ध है। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि राज्यपाल को विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर समयसीमा में फैसला लेना चाहिए। अदालत ने कहा कि राज्यपाल को एक उत्प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिए, न कि अवरोधक की।
अदालत ने राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजे जाने को भी अवैध बताया और इसे रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इन विधेयकों को उसी दिन से मान्य माना जाएगा, जिस दिन विधानसभा ने इन्हें दोबारा पारित कर राज्यपाल को भेजा था।
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि राज्यपाल ने 12 में से 10 बिलों को बिना कारण बताए लौटा दिया और 2 बिलों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। बाद में 18 नवंबर 2023 को विधानसभा के विशेष सत्र में इन 10 बिलों को दोबारा पारित कर राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा गया था, लेकिन राज्यपाल ने फिर भी इन पर कोई फैसला नहीं लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को चार विकल्प देता है—बिल को मंजूरी देना, रोकना, पुनर्विचार के लिए लौटाना या राष्ट्रपति के पास भेजना। लेकिन जब कोई बिल दोबारा पारित कर भेजा जाता है, तो राज्यपाल को उस पर मंजूरी देनी होती है।
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह न सिर्फ तमिलनाडु, बल्कि देश की सभी राज्य सरकारों की जीत है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल बार-बार विधेयकों को रोककर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा डाल रहे थे।
गौरतलब है कि 2021 में स्टालिन सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही राज्यपाल आरएन रवि और राज्य सरकार के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। जनवरी 2024 में विधानसभा सत्र के दौरान राज्यपाल बिना अभिभाषण के सदन से वॉकआउट कर गए थे, जिससे विवाद और गहराया।

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