नई दिल्ली ,सर्वोच्च न्यायालय ने एक 80 वर्षीय पिता को बड़ी राहत देते हुए उनके बेटे को मुंबई स्थित दो संपत्तियों को खाली करने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत ट्रिब्यूनल को यह अधिकार है कि वह बुजुर्गों की संपत्ति से उनके बच्चों या रिश्तेदारों को बेदखल करने का आदेश दे सके, अगर वे अपने भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन करते हैं।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के अप्रैल के फैसले को पलट दिया। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ट्रिब्यूनल के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें बेटे को पिता की संपत्तियां लौटाने का निर्देश दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून का उद्देश्य वृद्ध व्यक्तियों की कठिनाइयों को दूर करना और उनकी देखभाल व सुरक्षा सुनिश्चित करना है। पीठ ने टिप्पणी की, एक कल्याणकारी कानून होने के नाते, इसके लाभकारी उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए इसके प्रावधानों की उदारतापूर्वक व्याख्या की जानी चाहिए। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि यदि कोई बच्चा या रिश्तेदार वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण के अपने दायित्व का उल्लंघन करता है, तो ट्रिब्यूनल को उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का आदेश देने का पूरा अधिकार है।
याचिकाकर्ता 80 वर्षीय व्यक्ति हैं और उनकी पत्नी 78 वर्ष की हैं। उन्होंने मुंबई में दो संपत्तियां खरीदी थीं। बाद में वह अपनी पत्नी के साथ उत्तर प्रदेश चले गए और संपत्तियों को अपने बच्चों के पास छोड़ दिया। उनके बड़े बेटे ने दोनों संपत्तियों पर कब्जा कर लिया और अपने माता-पिता को वहां रहने की अनुमति नहीं दी।
आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद बेटे ने पिता को उन्हीं की संपत्ति से बेदखल कर अपने वैधानिक दायित्वों का उल्लंघन किया। इसके बाद, बुजुर्ग दंपति ने जुलाई 2023 में भरण-पोषण और संपत्ति वापस पाने के लिए ट्रिब्यूनल में अर्जी दायर की। ट्रिब्यूनल ने बेटे को दोनों संपत्तियां पिता को सौंपने और 3,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया। इस फैसले को अपीलीय ट्रिब्यूनल ने भी बरकरार रखा।
हालांकि, जब बेटा हाई कोर्ट पहुंचा, तो अदालत ने उसकी याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि ट्रिब्यूनल को संपत्ति खाली कराने का आदेश देने का अधिकार नहीं है। इसी फैसले के खिलाफ 80 वर्षीय पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जहां अब उन्हें न्याय मिला है।