देहरादून()। थराली के आपदा से मिले जख्मों से उभरने में काफी वक्त लगेगा। लोगों को अपनी छत से लेकर हरेक सामान की व्यवस्था करनी है। वह कहां रहेंगे और कैसे फिर से घर तैयार होगा, आपदा प्रभावितों की इस चिंता के बीच उनके बच्चे एक और उलझन में उलझे हुए हैं। आपदा ने खुशियों के साथ उनके भविष्य के सपने भी छीन लिए हैं। मलबे के ढेर में घर के साथ-साथ उनका बस्ता, कॉपी-किताबें और स्कूल ड्रेस तक सब दब गया है। आपदा प्रभावित थराली, सारी, चैपड़ों के ऐसे 35 बच्चे राहत शिविरों में रह रहे हैं, जिनकी पढ़ाई भी मझधार में फंसी हुई है। पेश है क्रांति भट्ट की रिपोर्ट- कृष्णा को राहत शिविर में किताबें आ रही याद कक्षा सात में पढ़ने वाली कृष्णा पंत कुलसारी स्थित राजकीय पॉलिटेक्निक में बनाए गए राहत शिविर में रह रही है। वह शुक्रवार रात साढ़े 12 बजे आई आपदा को याद करते हुए कहती है कि हमें कुछ भी मौका नहीं मिला कि अपना सामान, कपड़े, किताबें ले आएं। अब सबकुछ मलबे में दब गया है। मलबे में दबे घर में मेरी किताबें भी हैं। पता नहीं अब कैसे पढ़ाई फिर से शुरू होगी, जो नोट्स बनाए थे, उसे कैसे पूरा कर पाऊंगी। कृष्णा कहती हैं कि अभी तो चिंता रहने-खाने की है। घर के सब लोग परेशान हैं। लेकिन कल स्कूल खुलेंगे तो किस तरह से शुरूआत होगी। जो छूट गया है उसकी भरपाई कैसे होगी, इसका कुछ भी पता नहीं है। दीपक की पढ़ाई में आड़े आई आपदा कुलसारी के आपदा राहत शिविर में छठवीं का छात्र दीपक भी रह रहा है। रानी गांव में उसका घर है। आपदा से घर तो सुरक्षित है, लेकिन घर के दोनों तरफ नाला आने से उसे दादी के साथ राहत शिविर में शिफ्ट किया गया है।। दीपक कहता है कि हमारे घर को काफी खतरा है। अभी पढ़ाई पूरी तरह छूट गई है। यहां मेरे पास कापी-किताब कुछ भी नहीं है। वह स्थितियां सामान्य होने का इंतजार कर रहा है, ताकि घर जाकर अपना बस्ता ले आए। दीपक कहता है कि यहां पर पढ़ाई जैसा माहौल तो नहीं है, लेकिन स्कूल खुलते हैं तो फिर इन्हीं हालात में मुझे अपनी पढ़ाई को जारी रखना पड़ेगा। लक्ष्मी को सता रही बोर्ड परीक्षा की चिंता लक्ष्मी 12वीं में पढ़ती हैं, वह बोर्ड परीक्षा की तैयारियों में जुटी थीं, लेकिन आपदा ने उनके घर को ध्वस्त करने के साथ ही बोर्ड परीक्षा की तैयारियों को भी झटका दे दिया है। वह मां-पिता के साथ राहत शिविर में रह रही हैं और उनकी चिंता अपनी बोर्ड परीक्षा को लेकर है। कहती है कि जब घर ही नहीं होगा तो फिर वह कहां रहकर पढ़ेंगी। वह कहती हैं कि राहत शिविर में अभी जो सुविधाएं मिल रह हैं, वह हमारे दिनचर्या को चलाने के लिए अच्छी हैं, लेकिन पढ़ाई का माहौल तो यहां है नहीं। पूरे दिनभर लोगों को आना-जाना लगा रहता है। अब कहीं किराए का घर मिलेगा तो जाकर ही पढ़ाई शुरू हो पाएगी। पवनेश के पास पढ़ने के लिए कुछ भी नहीं बचा राडी गांव निवासी पवनेश भी राहत शिविर में रह रहा है। वह सातवीं का छात्र है। पवनेश कहता है कि आपदा के बाद से स्कूल बंद है। यहां रहकर पढ़ाई करने जैसी स्थिति है नहीं। वैसे भी पढ़ाई किससे करुंगा, कुछ बचा भी नहीं है। किताब-काफी से लेकर ड्रेस, बस्ता सबकुछ का इंतजाम करना है, लेकिन अभी यहां जो भी लोग हैं उनकी प्राथमिकता घर की है। ऐसी स्थिति में हमारी पढ़ाई कैसे शुरू होगी और आगे कैसे चलेगा, कुछ पता नहीं है। घरवालों के पास तो ऐसा फोन भी नहीं बचा है जिससे मैं फिलहाल ऑनलाइन पढ़ाई ही कर सकूं। जब तक कुछ इंतजाम नहीं हो जाता तब तक सहपाठियों से मदद लूंगा। खुशी की खुशियों को आपदा ले लगाया ग्रहण नौंवी में पढ़ने वाली खुशी परिवार के साथ राहत शिविर में रह रही है। यहां उसके जैसे कई और लड़कियां भी रह रही हैं, लेकिन सबके साथ एक जैसे हालात हैं। खुशी कहती है कि किसी के पास भी ऐसा मौका नहीं मिला कि वह किताबें भी साथ लेकर आ पाते। क्योंकि आपदा की राहत हर कोई जान बचाकर घरों से निकल गए थे। इसके बाद लौटने जैसे हालात हैं नहीं। किताबें भी मलबे में दब गई हैं। अब आगे क्या होगा खुशी को कुछ भी पता नहीं है। वह कहती है कि सबकुछ नए सिरे से जोड़ना होगा। जितना कुछ किया था, वह सब फिर तैयार करना पड़ेगा। फिलहाल तो हालात ऐसे हैं नहीं। घर ही नहीं रहा तो पढ़ाई कहां से होगी थराली के अपर बाजार की रहने वाली हेमलता कहती हैं कि जब घर ही नहीं बचा तो फिर पढ़ाई भी कहां से होगी। वह तलवाड़ी महाविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है। हेमलता कहती हैं कि पिता किसी तरह से घर चलाते हैं। आपदा ने हमारे सपनों को तोड़कर रख दिया है। पिताजी ने मेहनत कर जो कमाया था, वह सब बर्बाद हो गया। हरेक चीज को फिर से जोड़ना काफी मुश्किल होगा। ऐसे में मेरी पढ़ाई जारी भी रहेगी या नहीं, मैं अभी कुछ नहीं कह सकती। क्योंकि अभी परिवार को संभालना, फिर से हर सामान जुटाना ही हमारी प्राथमिकता है। देखते हैं सरकार कितनी मदद कर पाती है।