कांग्रेस चुप बैठने वाली नहीं है जनता की आवाज बनकर सड़कों पर उतरेंगे : सचिन पायलट
देहरादून। पेट्रोलियम पदार्थों की लगातार बढ़ती कीमतों और महंगाई के खिलाफ देशभर में चलाई जा रही कांग्रेस की मुहिम के तहत शुक्रवार को राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने उत्तराखंड में मोर्चा संभाला। केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए पायलट ने कहा कि कांग्रेस चुप बैठने वाली नहीं है। पार्टी के लोग जनता की आवाज बनकर सड़कों पर उतरेंगे। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत के बावजूद राजनीतिक अस्थिरता थोपने के लिए प्रदेश की जनता को केंद्र और भाजपा को माफ नहीं करेगी। प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में पत्रकारों से मुखातिब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट ने कोरोना से निपटने में कुप्रबंधन और अर्थव्यवस्था को संकट में डालने के आरोप केंद्र पर लगाए। हालांकि पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस की कीमतें और महंगाई पर जिस तरह उन्होंने पूरी तैयारी के साथ केंद्र पर हमला बोला, उससे ये संकेत दे दिए कि कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर खुद को जनता से सीधा जुड़ने पर ताकत झोंकेगी। उन्होंने कहा कि पहली बार 250 शहरों में पेट्रोल की कीमत सौ रुपये के पार पहुंच गई है। छह महीने में 66 बार दाम बढ़ाए गए हैं। प्रदेश सरकारों पर पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट कम नहीं करने के लग रहे आरोपों का बचाव करते हुए पायलट बोले, केंद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर चतुराई से सेस बढ़ाया है। इससे पेट्रोल में प्रति लीटर 33 रुपये और डीजल पर 32 रुपये की कमाई केंद्र को हो रही है, जबकि राज्यों के हिस्से में मामूली रकम जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम कम होने के बावजूद देशवासी पेट्रोलियम पदार्थों की ज्यादा कीमत देने को विवश हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र की पिछली मनमोहन सरकार ने कभी इन कीमतों पर अंकुश लगाए रखा, ताकि जनता को परेशानी न होने पाए।
पायलट ने आगे कहा, तीन कृषि कानूनों को लेकर देश में किसान नाराज है। हर राज्य का किसान परेशान है। कांग्रेस केंद्र की सरकार से इसका जवाब मांग रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और नवरत्नों को खत्म किया जा रहा है। सभी संस्थाओं पर पिछले सात साल में केंद्र ने अपना नियंत्रण बढ़ा दिया है, ताकि विरोध करने वालों पर दबाव बनाया जा सके। उन्होंने आरोप लगाया कि महंगाई, कोरोना से निपटने में नाकामी, अर्थव्यवस्था को नुकसान और दो करोड़ रोजगार कम करने के मामलों को जब भी उठाया जाता है, केंद्र की सरकार धर्म, संप्रदाय के मामलों को उठाकर उन पर चर्चा नहीं होने देती।