सुल्ली डील्स ऐप बनाने वाले ने कई अपराध किए हैं, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को राहत देने से किया इनकार
नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने सुल्ली डील्स ऐप के कथित निर्माता द्वारा एफआईआर को क्लब करने की याचिका पर शुक्रवार को तीन राज्यों को नोटिस जारी किया। साथ ही कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश को नोटिस जारी करते हुए, न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने आश्चर्य जताया कि क्या आरोपी बीसीए ग्रेजुएट ओंकारेश्वर ठाकुर को राहत देना संभव है, वो भी तब जब उस पर अलग-अलग त्यों के लिए अलग-अलग अपराधों का आरोप लगाया गया है।
जुलाई 2021 में दिल्ली पुलिस ने एक प्राथमिकी दर्ज की थी और यह आरोप लगाया था कि इंटरनेट के एक प्लेटफर्म ‘गिटहब’ पर ‘सुल्ली डील अफ द डे’ नाम का एक प्रोग्राम तैयार किया गया, जहां कई मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें उनकी सहमति के बगैर कथित तौर पर अनलाइन नीलामी के लिए अपलोड कर दी गईं।
बाद में इस साल जनवरी में, दिल्ली पुलिस ने ‘बुल्लीबाई’ ऐप के सिलसिले में एक और प्राथमिकी दर्ज की और आरोप लगाया गया कि ऐप की सामग्री का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं का अपमान करना था। शीर्ष न्यायालय ने ओमकारेश्वर ठाकुर नाम के व्यक्ति की याचिका पर दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से जवाब मांगा है। ठाकुर ने सुल्ली डील्स ऐप से संबंधित उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र में दर्ज प्राथमिकियां, या इस संबंध में देश में दायर किसी अन्य शिकायत को रद्द करने की मांग की है।
इस मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस़के़क कौल और न्यायमूर्ति एम़एम़ सुंदरेश की पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि कई अपराध किए गए हैं, क्योंकि कई तस्वीरें अपलोड की गईं थीं तथा जिन लोगों की तस्वीरें अपलोड की गईं, वे सभी पीड़ित पक्ष हैं। पीठ ने कहा कि वह इन प्राथमिकियों के संबंध में चल रही किसी भी जांच पर रोक नहीं लगाएगी। पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और इसकी सुनवाई तीन हफ्ते बाद के लिए निर्धारित कर दी।
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव शर्मा के जरिए दायर याचिका में ठाकुर ने कहा कि सुल्ली डील्स ऐप के सिलसिले में एक ही घटना को लेकर आरोपी के खिलाफ विभिन्न राज्यों में कई प्राथमिकियां और शिकायतें दर्ज की गई हैं। याचिका में कहा गया है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में दर्ज की गई प्राथमिकियां दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 और 156 के दायरे से बाहर हैं तथा यह मामला विभिन्न जांच एजेंसियों की जांच की वैधानिक शक्तियों के दुरुपयोग को प्रदर्शित करता है। इसमें कहा गया है कि दिल्ली में जुलाई 2021 में दर्ज की गई पहली प्राथमिकी को मुख्य प्राथमिकी माना जाए और बाद की प्राथमिकियां रद्द की जा सकती हैं।