विधि विधान से खुले हेमकुंड साहिब के कपाट
चमोली। सिखों के हिमालयी तीर्थ हेमकुंड साहिब के कपाट रविवार को विधि विधान से खुल गए हैं। पहले दिन 3 हजार तीर्थ यात्रियों ने वर्ष की पहली अरदास एवं प्रकाश पर्व पर दरबार साहिब में मत्था टेका। कोरोना काल के बाद दो वर्षों के अंतराल के उपरान्त विधिवत शुरू हो रही हेमकुंड की यात्रा को लेकर यात्रियों में खासा उत्साह देखने को मिला। कपाटोद्घघाटन पर इंगलैंड से भी आए जत्थे ने हेमकुंड में अरदास एवं शबद कीर्तन में भाग लिया।
शनिवार की देर शाम को घांघरिया पहुंचा जत्था रविवार की सुबह पांच बजे हेमकुंड के लिए रवाना हुआ। जिसके बाद घांघरिया से हेमकुंड तक की 5 किमी की खड़ी चढ़ाई का मार्ग जो बोले सो निहाल व वाहे गुरु दा खालसा जैसे उद्घघोषों से गूंज उठा। दो वर्षों के बाद यह 5 किमी की खड़ी चढ़ाई घोडे खच्चर, डांडी कांडी, पैदल यात्रियों की चहल पहल से गुलजार दिखा। इस अवसर पर गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट के अध्यक्ष जनक सिंह, उपाध्यक्ष नरेन्द्र जीत सिंह बिन्द्रा, आर्मी 418 के कर्नल आरएस पुण्डीर के अतिरिक्त इंगलैंड, मच्छीवाड़ा, जालंधर, पटियाला व दिल्ली से आया जत्था मौजूद रहा। कपाट खुलने पर ट्रस्ट के अध्यक्ष जनक सिंह ने हेमकुंड पैदल यात्रा मार्ग से बर्फ एवं ग्लेशियर हटाने वाले सेना के जवानों को स्वरूपा ओढ़ाकर सम्मानित किया व सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। वहीं सुरक्षा के दृष्टीगत इस बार घांघरिया एवं हेमकुंड में एसडीआरएफ की एक टुकड़ी तैनात की गई है।
हेमकुंड के कपाट खुलने से पहले आये तीर्थ यात्रियों ने पवित्र हिम सरोवर में स्नान किया। इसके बाद ठीक साढ़े नौ बजे पंच प्यारों की मौजूगी में ग्रंथी मिलाप सिंह एवं कुलवंत सिंह ने गुरुग्रंथ साहिब को सच खंड से दरबार साहिब में सुशोभित किया। जैसे ही ग्रंथी मिलाप सिंह एवं कुलवंत सिंह गुरुग्रंथ साहिब को अपने सर में रखकर सचखंड से बाहर आए। पूरा हेमकुंड क्षेत्र- सत नाम श्री वाहे गुरु, जो बोले सो निहाल ,वाहे गुरु दा खलसा के उद्घघोषों से गूंजने लगा। श्रद्घालुओं ने पुष्पवर्षा कर गुरुग्रंथ साहिब का स्वागत कर आशीर्वाद लिया। पंजाब से आये बैंड एवं गढ़वाल स्काउट के बैंडों की मधुर स्वर लहरियों के बीच गुरुग्रंथ साहिब को दरबार साहिब में सुशोभित किया गया। 11़30 बजे से 12़30 बजे तक भाई मोकम सिंह ने शबद कीर्तन किया। दोपहर एक बजे वर्ष की पहली अरदास हुई जिसके बाद हुक्मनामा लिया गया। तीर्थ यात्रियों को हलवा, पकोड़े, चाय, खिचड़ी प्रसाद के रूप में दी गई।