उत्तराखंड का लोक पर्व फूलदेई का अस्तित्व संकट में

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जगमोहन डांगी।
पौड़ी : विकासखंड कल्जीखाल के सैकड़ों गांव में पलायन के कारण लोक पर्व का अस्तित्व संकट में है, क्योंकि गांव में रोजगार, शिक्षा के अभाव के कारण पलायन हो गया है। गांव में केवल बड़े बुजुर्ग लोग शेष रहे गए है। जिस कारण चैत्र मास पर एक माह तक चलने वाला बच्चों का फूलदेई लोकपर्व का अस्तित्व संकट में है। गांव में छोटे बच्चों की संख्या न के बराबर है। इसका उदाहरण गांव के सैकड़ों प्राथमिक विद्यालय पर लटके ताले है। कुछ विद्यालय इस सत्र में बंद होने वाले है।
चैत्र मास लगते ही फूलदेई त्यौहार शूरू हो जाता है। इस त्यौहार में माह भर लगभग 9-10 वर्ष की बालिकाएं और बालक सब घरों की चौखट (आंगन) में सुबह के के समय प्रति दिन फूल चढ़ाती है। पूरे गांव की बालक-बालिकाएं मिल कर के एक साथ फूल चढ़ाती है, लेकिन जिस प्रकार गांव-गांव के खाली हो गए, इससे लोकपर्व का अस्तित्व भी संकट में है। केवल सोशल मीडिया पर ही लोकपर्व मनाया जा रहा है, जबकि गांव की देहलिया खाली पढ़ी है। मान्यता के अनुसार पुराने समय में एक लड़की को बहुत ही खराब सुसराल मिला। उन्होंने उसे चैत्र माह में भी मायके नहीं भेजा, जबकि सभी जगह चैत्र माह में विवाहिताओं को मायके भेजने का चलन था। मायके की ख़ुद में वो लड़की प्राण त्याग देती है। सुबह जब लड़की के घर (मायके) वालों ने दरवाजा खोला तो देहली में फ़ूल रखे हुए थे। गांव लोग इसे उस लड़की का आश्रीर्वाद मानते है। तब से पूरे माह अपने घरों की चौखट में फूलो को रख कर उसकी भावनाओं को समर्पित करते है। ऐसा माना जाता है। इसलिए चैत्र माह माह में फूलदेई पर्व मनाया जाता है।

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