केंद्र सरकार ने दिए आयातित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को निर्देश, पूरी क्षमता से करना होगा उत्पादन
नई दिल्ली, एजेंसी। आयातित कोयला से बिजली बनाने का लाइसेंस लेने के बावजूद विदेश से कोयला आयात करने में आनाकानी करने वाली निजी कंपनियों को सरकार ने अब कानूनी तौर पर घेर लिया है। बिजली अधिनियम, 2003 के तहत गुरुवार को एक अहम कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने इन कंपनियों के लिए हर स्थिति में अपने संयंत्र को चालू करने का निर्देश दिया है। बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 11 के तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह विशेष परिस्थितियों में किसी भी बिजली कंपनी को उत्पादन जारी रखने का निर्देश दे सकता है। वैसे अभी आयातित कोयला काफी महंगा है और सरकार के इस फैसले से बिजली की दरें भी बढेंगी लेकिन देश में 7-8 हजार मेगावाट बिजली की उपलब्धता हो सकेगी। इससे मई-जून में बिजली की मांग बढ़ कर 2़20 लाख मेगावाट होने की स्थिति से निबटने में आसानी होगी।
उधर, शुक्रवार को केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह ने देश में बिजली की स्थिति पर राज्यों के साथ उच्चस्तरीय बैठक की। इसमें उन्होंने राज्य सरकारों के साथ निजी सेक्टर के ताप बिजली संयंत्रों से आग्रह किया कि वो घरेलू कोयला मे 10 फीसद आयातित कोयला निश्चित तौर पर मिश्रित करें। उन्होंने कहा कि घरेलू कोयला की दिक्कतों को देखते हुए यह बहुत ही जरूरी है। इस बारे में अभी कदम उठाया जाए ताकि आने वाले दिनों में बिजली की बढ़ी हुई मांग को पूरा किया जा सके। इसके साथ ही राज्यों को यह भी कहा कि वो कैप्टिव कोयला ब्लाकों से कोयला उत्पादन बढ़ाने पर ज्यादा जोर दे।
बताते चलें कि बिजली मंत्रालय की तरफ से उक्त आश्वासन पिछले साल सितंबर-अक्टूबर से ही राज्यों को दिया जा रहा है लेकिन अभी तक सिर्फ तमिलनाडु और महाराष्ट्र की तरफ से कोयला आयात करने का ठेका दिया है जबकि पंजाब और गुजरात की तरफ से टेंडर जल्द ही जारी होने वाले हैं। राजस्थान व मध्य प्रदेश ने भी कहा है कि उन्होंने टेंडर जारी करने की प्रक्रिया शुरू की है। लेकिन बिजली संकट से जूझने वाले कई दूसरे राज्य जैसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, ओडीसा और झारखंड की तरफ कोई भी कदम नहीं उठाया गया है। बिजली अधिनियम के तहत जारी निर्देश में सरकार ने कहा है कि सभी आयात आधारित ताप बिजली संयंत्रों को पूरी क्षमता से काम करना होगा। इस श्रेणी के जिन संयंत्रों को दिवालिया कानून के तहत लिया गया है, उनका भी तेजी से निस्तारण करने की कोशिश होनी चाहिए। इन बिजली संयंत्रों को कहा गया है कि उत्पादित बिजली को पहले उन्हें पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) करने वाले डिस्काम को बेचनी होगी और इसके बाद बिजली बचती है तो उसे पावर एक्सचेंज को बेचा जाएगी। अगर कोई डिस्काम नहीं खरीदता है तो भी कंपनी बिजली पावर एक्सचेंज में बेच सकती है। इसके साथ ही डिस्काम के लिए यह व्यवस्था की गई है कि उन्हें हर हफ्ते बिजली की कीमत उक्त बिजली संयंत्रों को देनी होगी। आयातित कोयला से बिजली के महंगा होने की स्थिति में बिजली की दर के बारे में पीपीए करने वाले दोनो पक्षों के बीच सहमति बनाई जाएगी। इस बारे में पहले से निर्धारित बिजली की दर को बेंचमार्क माना जाएगा या फिर नई दर भी तय की जा सकती है।
सरकार के इस फैसले से टाटा समूह और अडाणी समूह के बिजली संयंत्रों में पूरा उत्पादन होने की संभावना है। लेकिन यह संभावना तब पुख्ता होगी जब ये कंपनियां कोयला आयात करना शुरू करेंगी। दूसरी तरफ सरकार ने पावर एक्सचेंज में बिजली की दर की अधिकतम सीमा 12 रुपये प्रति यूनिट तय कर दी है। देश में आयातित कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों की क्षमता 17,600 मेगावाट है लेकिन मुश्किल से 9-10 हजार मेगावाट के संयंत्र ही चल रहे हैं।