उत्तराखंड

तीन जिलों के भूमिहीन शिल्पकारों जमीन देने के मामले को चार माह में हो निस्तारण : हाईकोर्ट

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नैनीताल। हाईकोर्ट ने राज्य के तीन पर्वतीय जिलों के भूमिहीन शिल्पकारों को 1955 में उधमसिंह नगर बरहैनी रेंज मे विस्थापित करने के बाद अभी तक 600 परिवारों को जमीन का मालिकाना हक न दिए जाने के मामले पर सुनवाई की। कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिए है कि चार माह के भीतर इनके मामलों को निस्तारित करें।
गुरुवार को वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ में पर्वतीय भूमिहीन शिल्पकार समिति के अध्यक्ष केशर राम की याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें कहा है कि 1955 में टिहरी गढ़वाल, अल्मोड़ा व पिथौरागढ़ जिलों में बहुत बड़ा भूस्खलन हुआ था। जिसमे सैंकड़ो लोगो भूमिहीन हो गए थे। इस भूस्खलन के बाद इन भूमिहीन लोगों को बसाने के लिए भारत रन्त गोविंद बल्लभ पंत ने 1955 में उधमसिंह नगर के बरहैनी रेंज में विस्थापित किया गया। जिन्हें उस समय 1915 एकड़ भूमि दी गयी और 3300 एकड़ भूमि देने का वादा किया गया। इस 3300 एकड़ भूमि में से आधी से अधिक भूमि तुमड़िया डैम बनने में चली गयी, जो बची भूमि है उसे भी उन्हें दिया जाय।
शिल्पकार समिति का कहना है कि उनको अन्य भूमि देने के लिए सरकारों ने कई जीओ जारी भी किए। बरहैनी रेंज में रेवेन्यू विभाग व फारेस्ट विभाग के सयुक्त सर्वे के बाद 1585 एकड़ भूमि चिन्हित की गई। इस भूमि का अभी तक उनको मालिकाना हक विभाग द्वारा नही दिया गया। इस सम्बंध में एक वाद सिविल जज काशीपुर की कोर्ट में दायर किया गया जिसमें कोर्ट ने आदेश दिया कि उक्त भूमि का मालिकाना हक विस्थापितों को दिया जाय लेकिन वन विभाग द्वारा आज तक उनको यह हक नही दिया गया। जिस कारण उन्हें सरकार की योजनाओं के साथ ही मूलभूत सुविधाएं जैसे राशन कार्ड, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है। याचिकाकर्ता की मांग है कि उन्हें भूमिधरी हक दिया जाए ताकि यहां रह रहे गरीब परिवारों को मूलभूत सुविधाएं मिल सके और सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकें।

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