तेलंगाना के सीएम केसीआर की नई राष्ट्रीय पहल से बिगड़ेगा केंद्र में विपक्षी एकता का समीकरण
नई दिल्ली। भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी के लिए पिछले कुछ अर्से से कमर कस रहे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के़ चंद्रशेखर राव ने अपनी पार्टी का नाम बुधवार को तेलंगाना राष्ट्रसमिति से बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर लिया है। राष्ट्रीय स्तर पर पांव पसारने के उनके दांव ने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को सतर्क कर दिया है। पार्टी केसीआर की इस पहल को केंद्र में विपक्षी एकता के समीकरण के लिए नुकसानदेह मान रही है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री जेडीएस नेता कुमारस्वामी का केसीआर की इस पहल में शामिल होना इस नुकसान के शुरुआती संकेत भी माने जा रहे हैं।
राजनीतिक धूम-धड़ाके से शुरू की गई केसीआर की इस पहल के बावजूद कांग्रेस तथा उसके समर्थक विपक्षी खेमे के दल टीका-टिप्पणी से परहेज कर रहे हैं। इन दलों का मानना है कि केसीआर के इस राजनीतिक दांव को ज्यादा तवज्जो देना इसलिए भी मुनासिब नहीं है क्योंकि इसके सहारे वे विपक्षी खेमे की सियासत में अपनी हलचल बनाए रखना चाहते हैं। उनका मानना है कि टीआरएस चाहे बीआरएस बन जाए मगर केसीआर का राजनीतिक आधार तेलंगाना से बाहर नहीं है।
पर दूसरी सच्चाई यह भी है कि यही हाल किसी भी दूसरे क्षेत्रीय दल के नेताओं का है। डर यह है कि सूबे की सत्ता में होने के साथ अपने संसाधनों के सहारे वे कुछ राज्यों में ऐसे दलों के साथ राजनीतिक गलबहियां करने का प्रयास करेंगे जिनके कांग्रेस के साथ रिश्ते सहज नहीं हैं। ध्यान रहे कि पूर्व में केसीआर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से लेकर नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी जैसे की नेताओं से मिल चुके हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इस पर अनौपचारिक चर्चा करते हुए कहा कि केसीआर की ऐसी कोशिशें विपक्षी खेमे में बिखराव का नकारात्मक संदेश पहुंचाने में भूमिका जरूर निभाएगी। इस लिहाज से विपक्ष कमजोर होगा और भाजपा के लिए यह फायदेमंद हो सकता है। जेडीएस नेता कुमारस्वामी की केसीआर की पहल में शामिल होने को इसका नमूना बताते हुए उन्होंने कहा कि यह सही है कि कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के बीच चुनावी तालेमल की गुंजाइश नहीं है। लेकिन कांग्रेस की ओर से विपक्षी खेमे की राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक प्रयासों में जेडीएस अब तक शामिल होती रही थी, मगर केसीआर की पहल में उसके जुड़ने के बाद उसका रूख अलग होगा।
जाहिर तौर पर केसीआर इसमें जगनमोहन रेडडी की वाइएसआर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी से लेकर आम आदमी पार्टी जैसे उन दलों को जोड़ने का प्रयास करेंगे, जिनके कांग्रेस से अच्टे रिश्ते नहीं हैं। ऐसे दलों की संख्या और ताकत अच्छी खासी है। वहीं दक्षिण राज्य से जुड़े एआइसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि अधिकांश दल इस हकीकत को स्वीकार कर चुके हैं कि कांग्रेस के बिना राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता की कोई धुरी नहीं बन सकती।