सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हिजाब से न करें पगड़ी और पाण की तुलना, संविधान से मिली है अनुमति

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नई दिल्ली , एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी हिजाब मामले पर सुनवाई जारी रहा। इस दौरान अदालत ने कहा कि सिखों के पाण और पगड़ी की हिजाब से कोई तुलना नहीं है क्योंकि सिखों के लिए पगड़ी और पाण पहनने की अनुमति है। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील निजामुद्दीन पाशा ने पाण और पगड़ी और हिजाब के बीच समानता लाने की कोशिश की।
पाशा ने कहा कि हिजाब मुस्लिम लड़कियों की धार्मिक प्रथा का हिस्सा है और पूछा कि क्या लड़कियों को हिजाब पहनकर स्कूल आने से रोका जा सकता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि सिख छात्र भी पगड़ी पहनते हैं। पाशा ने जोर देकर कहा कि सांस्तिक प्रथाओं की रक्षा की जानी चाहिए। इस पर न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि सिखों के साथ तुलना उचित नहीं हो सकती है क्योंकि पाण ले जाने को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसलिए प्रथाओं की तुलना न करें। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि पगड़ी पर वैधानिक आवश्यकताएं बताई गई हैं और ये सभी प्रथाएं देश की संस्ति में अच्छी तरह से स्थापित हैं।
पाशा ने फ्रांस जैसे विदेशी देशों का उदाहरण देने की कोशिश की। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हम फ्रांस या अस्ट्रिया जैसा नहीं बनना चाहते। कोर्ट ने कहा कि हम भारतीय हैं और भारत में रहना चाहते हैं। पाशा ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की सुरक्षा करता है। पाशा ने कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट के निष्कर्ष कि हिजाब एक सांस्तिक प्रथा है, धारणा पर आधारित है। उन्होंने अपने तर्कों का समर्थन करने के लिए विभिन्न धार्मिक पुस्तकों का हवाला दिया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह गलत व्याख्या है कि हाई कोर्ट ने माना कि हिजाब एक सिफारिश न कि आवश्यकता।
वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि हर धार्मिक प्रथा जरूरी नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है कि राज्य इसे प्रतिबंधित करता रहता है। सुनवाई के दौरान एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश कामत ने अदालत को अवगत कराया कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है या नहीं, इस पर कर्नाटक, केरल और मद्रास उच्च न्यायालय के फैसलों ने अलग-अलग विचार रखे। कामत ने कहा कि मद्रास और केरल की अदालतों ने हिजाब को एक आवश्यक धार्मिक प्रथा के रूप में माना है, लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट अलग है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में यूनिफर्म पर आदेश बिना दिमाग लगाए बिना दिया गया है।

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