भारतीय राष्ट्रीय चेतना और भारतीय एकता में अनेकता के गहरे चिंतन के संयोग को बताया
श्रीनगर गढ़वाल : हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग की ओर से दो दिवसीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। 1857 से 1947 के हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय चेतना विषय पर आयोजित वेब संगोष्ठी में वक्ताओं ने हिंदी के विकास एवं उत्थान पर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। कहा राष्ट्रीय चेतना को जगाने में कवियों और लेखकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
इस मौके पर गढ़वाल विवि की कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल ने आज के वर्तमान दौर की राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सौहार्द पर विचार व्यक्त करते हुए एक अर्थ, एक भविष्य फ्यूचर, एक परिवार के भारतीय दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय चेतना और भारतीय एकता में अनेकता के गहरे चिंतन के संयोग को बताया। साथ ही भारतीय संस्कृति में योग और भारतीय चेतना पर विस्तार से बताया। विभाग की अध्यक्ष प्रो. मृदुला जुगरान ने कहा कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम पराधीन भारत में मुक्ति की छटपटाहट थी। राष्ट्रीय चेतना ने समय व काल के साथ देश व यहां के साहित्य को प्रभावित किया और कवियों और लेखकों ने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय चेतना को जगाया व स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। प्रो. गोपेश्वर सिंह ने राजनैतिक स्वतंत्रता के रूप को वर्णित करते हुए आजादी के व्यापक अर्थ को बताया व स्वतंत्रता की समग्र चेतना को परिभाषित किया। नवीन चंद लोहानी ने स्वतंत्रता आंदोलनों का महत्व, स्वतंत्रता आंदोलनों में कवियों और लेखकों की भूमिका, सामाजिक संस्थाओं का योगदान, बोलियों के साहित्य की महत्ता के विषय में जानकारी दी।डा. रामप्रसाद भट्ट (जर्मनी हैम्बर्ग में) ने राष्ट्रीय चेतना के विविध विषयों पर दृष्टि, साहित्य की विविध राष्ट्रों और भारतीय पृष्ठभूमि में स्थिति, भारतीय संस्कृति और भारतीय राष्ट्रीय चेतना, भारत में वर्तमान में धर्म और राजनीति की स्थिति, राष्ट्रीय चेतना की जागृति में साहित्यकार भारतेंदु और प्रेमचंद के योगदान पर अपनी बात रखी। संचालन संगोष्ठी की संयोजक डा. गुड्डी बिष्ट ने किया। डा. अमित कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। मौके पर प्रो. रचना विमल (सत्यवती कॉलेज दिल्ली विवि), सुरेश चंद्र शुक्ल (नार्वे) आदि ने भी प्रतिभाग किया। (एजेंसी)