संपादकीय

यात्रा प्राधिकरण बेहतर या देवस्थानम

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इस वर्ष की चार धाम यात्रा के दौरान शुरुआती दौर में ही पंजीकरण, परिवहन, पार्किंग तथा आवास की समस्या बड़े स्तर पर देखने को मिली जिसके कारण और व्यवस्थाएं भी नजर आई। एक लंबे समय से उत्तराखंड की चार धाम यात्रा समेत अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर एक बोर्ड की जरूरत महसूस की जा रही थी ठीक वैसे ही जैसे कि वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड और शिरडी में कार्य करती है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में देव स्थानम बोर्ड के गठन के पीछे भी यही अवधारणा थी कि सभी धार्मिक स्थलों को एक बोर्ड के तहत सम्मिलित कर यात्रियों के लिए सुख सुविधा एवं धार्मिक स्थलों का विकास किया जा सके। हालांकि इसका संत पुरोहितों एवं सामाजिक स्तर पर भी विरोध देखने को मिला जिसके बाद सरकार ने अपने प्रस्ताव को वापस ले लिया। अब इस बार देवस्थानम बोर्ड तो नहीं लेकिन उसी तर्ज पर प्राधिकरण बनाने की सरकार तैयारी कर रही है जिसका उद्देश्य धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन के साथ ही श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं प्रदान करना है। नई व्यवस्था बनाने के तहत चारधाम समेत प्रदेश के सभी प्रसिद्ध मंदिरों और धार्मिक मेलों के लिए यात्रा प्राधिकरण बनाए जाने की घोषणा के बाद अब शासन स्तर पर प्राधिकरण का प्रारूप तैयार करने के लिए शासन स्तर पर भाग दौड़ शुरू हो गई है। असल में जिस प्रकार से उत्तराखंड का चार धाम यात्रा आयोजन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से विकसित हुआ है उसके बाद यहां यात्रियों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी, लेकिन प्रबंधन व्यवस्था बिगड़ती चली गई। पूर्व सीजन में भी दर्शनों को लेकर श्रद्धालुओं को भारी और असुविधा का सामना करना पड़ा था और कई यात्री तो बिना दर्शन किए ही विवश होकर वापस लौट गए। इस वर्ष की यात्रा में भी शुरुआती दौर पर श्रद्धालुओं का जो सैलाब उमड़ कर सामने आया उसने सरकार की चार धाम व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े कर दिए। अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि बिना कोई ठोस निर्णय लिए बिना चार धाम यात्रा को पुराने प्रारूप पर आयोजित करना संभव नहीं है और इसके लिए एक ऐसी व्यवस्था अमल में लानी जरूरी था जैसी की वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड और शिर्डी में देखने को मिलती है। संबंधित विभागों को प्राधिकरण को प्रभावी बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा लेकिन एक सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि यात्र प्राधिकरण बनाने की जरूरत महसूस हुई है तो पूर्व में देव स्थानम बोर्ड का व्यापक विरोध क्यों किया गया था? देवस्थानम बोर्ड का उद्देश्य भी चार धाम यात्रा प्रबंधन को विकसित करना और श्रद्धालुओं की शुभ सुविधाओं से जुड़ा हुआ था, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार का यह प्रयास परवान नहीं चढ़ सका। बताया जा रहा हैं कि नए यात्रा प्राधिकरण के तहत सिर्फ चार धाम ही नहीं बल्कि मानसखंड मंदिर माला मिशन के तहत आने वाले पूर्णागिरि, जोगेश्वर धाम, कैंचीधाम, देवीधुरा, कांवड़ मेले के आयोजन को लेकर भी नीति और व्यवस्था तैयार करेगा। देवस्थानम बोर्ड हो या फिर प्राधिकरण संस्था का उद्देश्य सिर्फ यह होना चाहिए कि यात्रियों को असुविधा का सामना न करना पड़े और हजारों मील की यात्रा करने के बाद सिर्फ अव्यवस्थाओं के कारण आराध्य देवों के दर्शनों से वंचित न होना पड़े। यहां सबसे बड़ी एक चुनौती सरकार के आगे संत पुरोहितों को विश्वास में लेने की भी होगी, क्योंकि पहले ही देवस्थानम बोर्ड को लेकर काफी बवाल पैदा हो चुका है इस स्थिति में प्राधिकरण का प्रारूप किस प्रकार होगा और यह किस अवधारणा के तहत कार्य करेगा इसकी ठोस रणनीति तैयार करने के साथ-साथ संत समाज एवं श्रद्धालुओं में भी विश्वास जागृत करना होगा।

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