वैज्ञानिकों का दावा: एक दिन में नहीं आ सकता सैलाब, कुछ दिन पहले हो गयी होगी शुरूआत
देहरादून। ऋषिगंगा घाटी में रविवार को आया सैलाब सिर्फ एक दिन की घटना नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटना की शुरूआत कम से कम एक दिन पहले हो चुकी थी। ग्लेशियर टूटने की वजह से पहले झील बनी और फिर झील टूटने से ऋ षिगंगा में सैलाब आया। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक डॉ एमपीएस बिष्ट ने बताया कि रविवार सुबह ऋषिगंगा घाटी में आया सैलाब सीधे ग्लेशियर टूटने की वजह से होने की संभावना कम है।
उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया के त्रिशूल और रामणी ग्लेशियर के ठीक बीच में स्थित ड्योटी नामक स्थान पर ग्लेशियर का हिस्सा टूट गया होगा जो ऋषिगंगा में पहुंच गया। ग्लेशियर का टूटा हिस्सा बहुत बड़ा होने की संभावना बहुत कम है। ऐसा लग रहा है कि ग्लेशियर की वजह से नदी का प्रवाह कुछ समय के लिए बाधित हुआ और फिर वह कृत्रिम झील कुछ देर में टूट गई जिससे ऋषिगंगा में बाढ़ आ गई।
हालांकि बाढ़ का पानी बहुत अधिक नहीं था। उन्होंने बताया कि रैणी और तपोवन में नदी में पानी का स्तर तीन मीटर से अधिक नहीं था। जो कर्णप्रयाग में आते आते डेढ़ मीटर तक रह गया। ऐसे में बहुत बड़ा ग्लेशियर या झील टूटने की घटना नहीं हुई। उन्होंने कहा कि ग्लेशियर का छोटा हिस्सा टूटा जिससे नदी ब्लॉक हो गई और उसके टूटने से ही ऐसी स्थिति पैदा हुई।
ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया में हैं 14 ग्लेशियर
नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया में कुल 14 ग्लेशियर हैं जो 52 स्कायर किमी क्षेत्र में फैले हुए हैं। इनमें रौथी ग्लेशियर, पिथार ग्लेशियर, त्रिशूल ग्लेशियर, दक्षिणी ऋषि ग्लेशियर, दक्षिणी नंदा देवी ग्लेशियर, उत्तरी नंदा देवी ग्लेशियर, उत्तरी ऋषिगंगा ग्लेशियर, चंगबंग ग्लेशियर, ऋषिकोट रामणी ग्लेशियर और हनुमान ग्लेशियर शामिल हैं।
संकरी घाटी की वजह से बढ़ा प्रवाह
ऋषिगंगा नदी नंदादेवी पर्वत के ठीक नीचे सरसो पातल से शुरू होती है। इस नदी पर पहला गांव रेणी पड़ता है। उसके बाद तपोवन गांव पड़ता है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक डॉ एमएपीएस बिष्ट ने बताया कि सरसो पातल से लेकर तपोवन तक घाटी बहुत संकरी है इस वजह से सैलाब का वेग बढ़ गया। लेकिन जैसे ही घाटी कुछ चौड़ाई लिए है वहां से नदी का जल स्तर कुछ कम हो गया।