विकास की राह देख रहे पांड गांव के ग्रामीण
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। कॉर्बेट नेशनल पार्क से सटे विकासखंड नैनीडांडा के ग्राम पांड में मूलभूत सुविधाओं का अभाव होने के कारण ग्रामीण सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा की मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। देश की आजादी के बाद केन्द्र राज्य सरकार ने गांवों को मूलभूत सुविधाएं बिजली, पानी, सड़क, चिकित्सा तथा विद्यालय के लिए करोड़ों रुपए योजनाओं के माध्यम से खर्च तो कर दिए, लेकिन आज भी कई गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। ग्राम पांड के ग्रामीण आज भी विकास की राह देख रहे है। राज्य बनने के बीस साल बाद भी ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पाई है।
ग्रामीण मुकेश सुन्दरियाल ने बताया कि आजादी के बाद से आज तक गांव मेंं बिजली, सड़क, शिक्षा, पानी, चिकित्सा की सुविधा नहीं होने से ग्रामीणों को आजाद देश में भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है। उन्होंने बताया की देश और राज्यों ने तो कई क्षेत्रों में प्रगति की है, लेकिन हमारा गांव आज भी विकास के क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ है। गांव में मूलभूत सुविधाओं का आज भी टोटा है, लेकिन प्रशासन द्वारा अभी तक गांव में मूलभूत सुविधा उपलब्ध न होने के कारण ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। गांव में तो बिजली, चिकित्सा, सड़क, पेयजल, शिक्षा सहित कई अन्य सुविधाओं के लिए आज भी ग्रामीण तरस रहे हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा कई बार घोषणाओं में कहा गया कि जिन गांवों में बिजली नहीं है वहां पर सोलर पावर से संचालित स्ट्रीट लाईट की व्यवस्था की जायेगी, लेकिन गांव में कुछ ही परिवारों को स्ट्रीट लाईट दी गई है। उन्होंने कहा कि एक ओर तो केन्द्र और राज्य सरकार गांवों से पलायन रोकने की बात कह रही है, लेकिन गांवों में मूलभूत सुविधायें उपलब्ध कराने में भी सरकार नाकाम रही है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया और आज भी यह लोग सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत समस्याओं से वंचित हैं। ग्रामीण पिछले काफी समय से केन्द्र और राज्य सरकार से गांव में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग को लेकर पत्राचार रह रहे है, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिससे ग्रामीणों में आक्रोश पनप रहा है। मुकेश सुन्दरियाल ने कहा कि अगर जल्द ही ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गई तो ग्रामीण आंदोलन को बाध्य होगें। जिसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।