भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन का इंतजार जल्द होगा खत्म, संसद के मानसून सत्र में आ सकता है विधेयक
नई दिल्ली,एजेंसी। अलग-अलग नियामकों के बीच बिखरी उच्च शिक्षा को फिलहाल भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआइ) जैसे एक नियामक के दायरे में लाने की तैयारी पूरी हो गई है। शिक्षा मंत्रालय ने इसका पूरा ढांचा तैयार कर लिया है। अब इसे सिर्फ संसद की मंजूरी मिलना बाकी है। संसद के आगामी मानसून सत्र में सरकार इसे लेकर विधेयक ला सकती है।
सरकार बजट में इस प्रस्तावित आयोग को इसी साल गठित करने का एलान कर चुकी है। ऐसे में अब इसके गठन के लिए ज्यादा समय नहीं है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अमल की जिस तरह से तैयारी चल रही है, उसमें भी इस आयोग को वर्ष 2021 में गठित करने का लक्ष्य तय किया गया है। मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की मानें तो प्रस्तावित आयोग ज्यादा सशक्त होगा। इसमें पूरी उच्च शिक्षा को सामान रूप से आगे लेकर बढ़ने की क्षमता होगी।
फिलहाल इस प्रस्तावित आयोग के तहत चार स्वतंत्र संस्थाएं भी गठित होंगी। इनमें पहली राष्ट्रीय उच्च शिक्षा विनियामक परिषद ( एनएचईआरसी) होगी। यह उच्च शिक्षा के लिए एक रेगुलेटर की तरह काम करेगी, जिसमें शिक्षक शिक्षा (टीचर एजुकेशन) शामिल है, मगर चिकित्सकीय एवं विधिक शिक्षा शामिल नहीं है।
दूसरी संस्था राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी) होगी। यह नैक की जगह लेगी जो उच्च शिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन करेगी। तीसरी संस्था उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी) होगी जो उच्च शिक्षण संस्थानों की फंडिंग का काम देखेगी। चौथी संस्था सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी) होगी जो नए-नए शिक्षा कार्यक्रमों को तैयार करने और उन्हें लागू करने का काम देखेगी।
मालूम हो कि अभी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सहित करीब 14 नियामक काम करते हैं। इनमें तकनीकी शिक्षा, शिक्षक शिक्षा, विश्वविद्यालयों से जुड़ी शिक्षा आदि शामिल हैं। अभी एक ही विश्वविद्यालय या संस्थान को अलग-अलग कोर्सों को संचालित करने के लिए इन सभी नियामकों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। साथ ही सभी के नियमों को पूरा करना होता है।
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन से जुड़ी टीम के मुताबिक, उच्च शिक्षा के मौजूदा बिखराव के खत्म होने से उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता में तेजी से सुधार दिखेगा। इससे उच्च शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने की मुहिम में तेजी आएगी। मौजूदा समय में शोध सहित दूसरे शैक्षणिक मापदंडों को पूरा नहीं करने पाने के कारण उच्च शिक्षण संस्थान विश्वस्तरीय संस्थानों की दौड़ में पिछड़ जाते हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि प्रस्तावित आयोग का जो स्वरूप तय किया गया है, उसमें सभी संस्थानों को बढ़ने का मौका मिलेगा।