कर्नाटक में लागू हुआ सम्मान के साथ मरने का अधिकार, क्या है और यह कैसे मिलेगा?

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-यह अधिकार लागू करने वाला दूसरा राज्य बना
बेंगलुरु, कर्नाटक ने सम्मान के साथ मरने का अधिकार को आसान बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया है। सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार ने गत शुक्रवार (31 जनवरी) को इसे राज्य में लागू करने के साथ राज्य भर के अस्पतालों में मेडिकल बोर्ड की स्थापना करने का आदेश दिया है।
ऐसे में अब गंभीर या लाइलाज बीमारी से ग्रसित मरीज चिकित्सकीय उपचार रोककर प्राकृतिक मौत हासिल कर सकेंगे।आइए इस अधिकार और इसके प्रावधान जानते हैं।कर्नाटक सरकार का यह निर्णय 2023 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आया है जिसमें गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु नियमों को सरल बनाया गया था।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में सम्मान के साथ मरने का अधिकार भी शामिल होता है और इसे सुगम बनाया जाना चाहिए।इसके साथ ही कर्नाटक यह अधिकार लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है।कोई मरीज अगर गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीडि़त है और वह जीवन रक्षक उपचार जारी नहीं रखना चाहता, तो अस्पताल और डॉक्टर उस मरीज के फैसले का सम्मान करने के लिए बाध्य होंगे।जिला चिकित्सा अधिकारी ऐसे मामलों को प्रमाणित करने के लिए द्वितियक बोर्ड में शामिल न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट या इंटेंसिविस्ट के सामने रखेंगे।इसी बोर्ड के फैसले के बाद ही मरीज को सम्मान के साथ मृत्यु तक पहुंच का अधिकार मिल सकेगा।सम्मान के साथ करने के अधिकार को मंजूरी मिलने के बाद संबंधित अस्पताल में संबंधित मरीज को बचाने के लिए चल रहा संपूर्ण उपचार रोक दिया जाएगा। इसके बाद वह प्राकृतिक रुप से जान गंवा सकेगा। हालांकि, इसमें कई दिन भी लग सकते हैं।कर्नाटक के कानून के हिसाब से 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग लिविंग विल (जीवित इच्छा) के जरिए यह अधिकार हासिल कर सकते हैं।यह विल एक कानूनी दस्तावेज है, जो लोगों को यह अधिकार देती है कि अगर वे असाध्य रूप से बीमार हों या उनकी ठीक होने की उम्मीद न हो तो वह यह अधिकार ले सकते हैं।इसके लिए उन्हें लिखित में देना होगा कि ऐसे हालात में उन्हें सम्मान के साथ मरने दिया जाए।कर्नाटक सरकार ने इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए अस्पतालों में मेडिकल बोर्ड की स्थापना के आदेश दिए हैं।सभी डीएचओ को द्वितीयक मेडिकल बोर्ड में गंभीर या लाइलाज बीमारी से ग्रसित मरीजों के जीवन रक्षक चिकित्सा को वापस लेने की आवश्यकता को प्रमाणित करने वाले विशेषज्ञ चिकित्सकों को शामिल करने के आदेश दिए हैं।इनमें न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट या इंटेंसिविस्ट जैसे विशेषज्ञों को शामिल किया जा सकेगा। यही इसका निर्णय करेंगे।
सरकार की ओर से जारी प्रपत्र के अनुसार, अस्प्तालों में प्राथमिक और द्वितीयक मेडिकल बोर्ड स्थापित होगा, जिसमें प्रत्येक में तीन पंजीकृत चिकित्सक शामिल होंगे।
दोनों मेडिकल बोर्ड रोगी के निकटतम रिश्तेदार की सहमति प्राप्त करने के बाद लिविंग विल पर निर्णय लेंगे।
इसके बाद बोर्ड के निर्णयों की प्रतियां उन्हें प्रभावी बनाने से पहले प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट (जेएमएफसी) को भेजी जाएगी और जेएमएफसी रिकॉर्ड के लिए उन्हें हाई कोर्ट रजिस्ट्रार को भेजेगा।
सम्मान के साथ मृत्यु का अधिकार और इच्छामृत्यु आपस में जुड़े हुए हैं, लेकिन अलग-अलग हैं।
मृत्यु के अधिकार में किसी व्यक्ति को गरिमा के साथ अपने जीवन के अंतिम क्षणों को उपचार के साथ बिताने या न बिताने का फैसला लेने का हक मिलता है।
इच्छामृत्यु में मरीज की जिंदगी को जानबूझकर इंजेक्शन जैसे तरीकों से खत्म किया जाता है, जिससे उसका दर्द खत्म हो सके। कानूनी तौर पर इच्छामृत्यु भारत में अवैध और अपराध माना गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, जून 2024 में बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा बेंच की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस एमएस सोनक गोवा में लिविंग विल रजिस्टर करने वाले पहले व्यक्ति बने थे।
इसके साथ ही गोवा अग्रिम चिकित्सा निर्देश लागू करने वाला पहला राज्य बना था।
सितंबर 2024 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मसौदा दिशा-निर्देश तैयार किए, जिसमें किसी व्यक्ति के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु के विकल्प के मूल्यांकन के लिए 4 शर्तें बताई थीं।

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