अमित शाह ने चीन और पाकिस्तान का नाम लिए बिना दी नसीहत, ‘प्याज के छिलके’ वाली तकनीक को लेकर चेताया
नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्रीय गृह मंत्री ने चीन और पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्हें नसीहत दे दी है। शाह ने कहा, टेक्नोलॉजी आज सभी कन्वेंशनल जियोग्राफिकल, पॉलिटिकल और आर्थिक सीमाओं के पार पहुंच चुकी है। आज हम एक बड़े ग्लोबल डिजिटल विलेज में रहते हैं। हालांकि टेक्नोलॉजी, मानवीय समाज और देशों को ज्यादा तेजी से करीब लाने वाला एक पॉजिटिव डेवलपमेंट है, लेकिन कुछ असामाजिक तत्व तथा स्वार्थी वैश्विक ताकतें भी हैं, जो नागरिकों और सरकारों को, आर्थिक एवं सामाजिक नुकसान पहुंचाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही हैं। गृह मंत्री का इशारा, चीन और पाकिस्तान की तरफ था। ये दोनों देश, साइबर अपराध के अलावा आतंकियों को विभिन्न तरीकों से फंडिंग भी कर रहे हैं। आज 840 मिलियन भारतीयों की ऑनलाइन मौजूदगी है। साल 2025 तक नए 400 मिलियन भारतीय डिजिटल दुनिया में प्रवेश करेंगे। कुछ स्वार्थी वैश्विक ताकतों की मदद से आतंकियों द्वारा ‘प्याज के छिलके’ उतारने वाली तकनीक यानी डार्कनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं। इस तकनीक के जरिए वे लोग अपनी पहचान छिपाने में कामयाब हो जाते हैं। दूसरा, आतंकी संगठन रेडिकल मैटेरियल को फैलाने में भी डार्कनेट का उपयोग कर रहे हैं।
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुरुग्राम में ठाळ२, अक और टी३ं५ी१२ी के युग में अपराध व सुरक्षा पर ॅ-20 सम्मेलन के उद्घाटन सत्र पर यह बात कही है। इस दो दिवसीय सम्मेलन में जी20 देशों, 9 विशेष आमंत्रित देशों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी लोगों, भारत और दुनियाभर के डोमेन विशेषज्ञों सहित 900 से अधिक प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। शाह ने कहा, आतंकवादी हिंसा को अंजाम देने, युवाओं को रैडिकलाइज करने तथा वित्त संसाधन जुटाने के नए तरीके खोज रहे हैं। आतंकवादियों द्वारा वर्चुअल एसेट्स के रूप में नए तरीकों का उपयोग, फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन के लिए किया जा रहा है। आतंकवादी अपनी पहचान छिपाने के लिए और रेडिकल मैटेरियल को फैलाने के लिए डार्क-नेट की मदद ले रहे हैं। हमें डार्क-नेट पर चलने वाली इन गतिविधियों के पैटर्न को समझना होगा और उसके उपाय भी ढूंढने होंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, गत 9 वर्षों में इंटरनेट कनेक्शन में 250 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। प्रति जीबी डाटा की लागत में 96 फीसदी की कमी आई है। भारत 2022 में 90 मिलियन लेनदेन के साथ वैश्विक डिजिटल भुगतान में अग्रणी रहा है। अब तक भारत में 35 ट्रिलियन रुपये के यूपीआई ट्रांजेक्शन हुए हैं। कुल वैश्विक डिजिटल भुगतान का 46 फीसदी भारत में भुगतान हुआ है। 2017-18 के बाद लेन-देन की मात्रा में 50 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। भारत नेट के तहत 6 लाख किलोमीटर की ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई जा चुकी है। साइबर खतरों की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। इंटरपोल की वर्ष 2022 की ‘ग्लोबल ट्रेंड समरी रिपोर्ट’ का हवाला देते हुए शाह ने कहा, रैनसमवेयर, फिशिंग, ऑनलाइन घोटाले, ऑनलाइन बाल यौन-शोषण और हैकिंग जैसे साइबर अपराध की कुछ प्रवृतियां विश्वभर में गंभीर खतरे की स्थिति पैदा कर रही हैं। ऐसी संभावना है कि भविष्य में ये साइबर अपराध कई गुना और बढ़ेंगे।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जी20 के मंच पर साइबर सिक्योरिटी पर अधिक ध्यान देने से, अहम ‘इनफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर’ और ‘डिजिटल पब्लिक प्लेटफार्मों’ की सुरक्षा और संपूर्णता सुनिश्चित करने में सकारात्मक योगदान मिल सकता है। इस मंच पर साइबर सिक्योरिटी और साइबर क्राइम पर विचार-विमर्श करने से इंटेलिजेंस व इनफॉर्मेशन शेयरिंग नेटवर्क के विकास में मदद मिलेगी। साथ ही ग्लोबल कोऑपरेशन को बल मिलेगा।
डिजिटल युग के मद्देनजर, साइबर सिक्योरिटी, ग्लोबल सिक्योरिटी की एक जरूरी पहलू बन गई है, जिसके इकोनॉमिकल तथा जिओ-पॉलिटिकल प्रभावों पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है। आतंकवाद, टेरर फाइनेंसिंग, रेडिकलाइजेशन, नार्को, नार्को-टेरर लिंक्स और मिस-इनफॉर्मेशन सहित नई उभरती, पारंपरिक व गैर-पारंपरिक चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए राष्ट्रों एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों की क्षमताओं को मजबूत बनाना आवश्यक है।
हमारी कन्वेंशनल सिक्योरिटी चुनौतियों में ‘डायनामाइट से मेटावर्स’ और ‘हवाला से क्रिप्टो करेंसी’ का परिवर्तन दुनिया के देशों के लिए निश्चित ही चिंता का विषय है। आतंकवादी हिंसा को अंजाम देने, युवाओं को रैडिकलाइज करने तथा वित्त संसाधन जुटाने के नए तरीके खोज रहे हैं। आतंकवादियों द्वारा वर्चुअल एसेट्स के रूप में नए तरीकों का उपयोग, फाइनेंसियल ट्रांजैक्शन के लिए किया जा रहा है। आतंकवादी अपनी पहचान छिपाने के लिए और रेडिकल मैटेरियल को फैलाने के लिए डार्क-नेट का उपयोग कर रहे हैं। शाह ने कहा कि हमें डार्क-नेट पर चलने वाली इन गतिविधियों के पैटर्न को समझना होगा। मेटावर्स, जो कभी साइंस फिक्शन था, अब वास्तविक दुनिया में कदम रख चुका है। इससे आतंकवादी संगठनों के लिए मुख्य रूप से प्रचार, भर्ती और प्रशिक्षण के नए अवसर पैदा हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इससे आतंकी संगठनों के लिए ऐसे लोगों का चयन करना, उन्हें टारगेट बनाना और उनकी कमजोरियों के अनुरूप मैटेरियल तैयार करना आसान हो जाएगा। मेटावर्स यूजर की पहचान की नकल करने के अवसर भी पैदा करता है, जिसे ‘डीप-फेक’ कहा जाता है। व्यक्तियों के बारे में बेहतर बायोमेट्रिक जानकारी का उपयोग करके अपराधी, यूजर का रूप धरने और उनकी पहचान चुराने में सक्षम हो जाएंगे।
साइबर अपराधियों द्वारा रैंसमवेयर हमलों, महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा की बिक्री, ऑनलाइन उत्पीड़न, बाल-शोषण से लेकर फर्जी समाचार और ‘टूलकिट’ के साथ मिस-इनफॉर्मेशन कैंपेन जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। इसके साथ ही, क्रिटिकल इनफॉर्मेशन और फाइनेंशियल सिस्टम्स को स्ट्रेटेजिक लक्ष्य बनाने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। ऐसी गतिविधियां राष्ट्रीय चिंता के विषय हैं, क्योंकि इनकी गतिविधियों का सीधा प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून व्यवस्था और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। शाह ने इस बात पर जोर दिया कि अगर हमें ऐसे अपराधों और अपराधियों को रोकना है, तो कन्वेंशनल जियोग्राफिक बॉर्डर से ऊपर उठकर सोचना होगा। डिजिटल युद्ध में टारगेट हमारे भौतिक संसाधन नहीं होते हैं, बल्कि हमारी ऑनलाइन कार्य करने की क्षमता को टारगेट किया जाता है। कुछ ही मिनट्स के लिए भी ऑनलाइन नेटवर्क में व्यवधान घातक हो सकता है। हमारा इन्टरनेट विजन न तो राष्ट्र के अस्तित्व को संकट में डालने वाला अत्यधिक फ्रीडम का होना चाहिए और न ही डिजिटल फ़ायरवॉल जैसे आइसोलेशनिस्ट स्ट्रक्चर का होना चाहिए। भारत ने कुछ ऐसे ‘ओपन-एक्सेस डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ मॉडल खड़े किये हैं, जो आज विश्व में मिसाल बने हुए हैं। भारत ने डिजिटल आइडेंटिटी का आधार मॉडल, रियल-टाइम फ़ास्ट पेमेंट का यूपीआई मॉडल, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स, हेल्थ के क्षेत्र में ओपन हेल्थ सर्विस नेटवर्क, जैसे और भी मॉडल्स विकसित किए हैं। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019-2023 के दौरान साइबर हमलों से दुनिया को लगभग 5.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता था। मेलिशियस थ्रेट एक्टर्स द्वारा क्रिप्टो करेंसी का उपयोग इसकी पहचान और रोकथाम को और जटिल बना देता है।