प्रदेश में गिद्धों की स्थिति चिंताजनक

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-शिक्षक दिनेश चंद्र कुकरेती के अनुसार लगातार घटती जा रही गिद्धों की संख्या
-गिद्धों के संरक्षण को उठाने होंगे ठोस कदम, नहीं तो हो जाएंगे विलुप्त
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : प्रदेश में गिद्धों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। 1980 के दशक में यहां गिद्धों के 300 से अधिक स्थायी ठिकाने थे, जिनमें हजारों की संख्या में गिद्ध निवास करते थे। आज इनके स्थायी ठिकानों की संख्या लगभग 10 रह गई है। साथ ही गिद्धों की संख्या में भी भारी गिरावट आई है। यह कहना है कि शिक्षक दिनेश चंद्र कुकरेती का। वह पिछले 12 सालों से गिद्धों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं और लोगों को इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं।

नन्दपुर कोटद्वार निवासी शिक्षक दिनेश चंद्र कुकरेती के अनुसार वह 2010 से गिद्धों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। मानव की प्रकृति से छेड़छाड़ व जानवरों पर कीटनाशक के इस्तेमाल ने पिछले कुछ सालों में गिद्धों की प्रजातियों पर काफी बुरा प्रभाव डाला है। इसके अलावा वन तस्करों की सक्रियता ने भी गिद्धों को काफी नुकसान पहुंचाया है। दिनेश चंद्र कुकरेती रिखणीखाल नैनीडांडा के बीच पहाड़ी पर गिद्धों के ठिकानों को एक बार फिर से जीवित करने के लिए कार्य कर रहे हैं। उनके द्वारा कई गोष्ठियां व रैलियां भी क्षेत्र में निकाली जाती हैं, जिससे लोग जानवरों पर कीटनाशन का इस्तेमाल न करें और गिद्धों को पर्याप्त भोजन मिल सके। उनके अनुसार कीटनाशन के इस्तेमाल से ही वर्ष 1987 से 1991 के बीच भारी संख्या में गिद्ध मृत अवस्था में मिले थे। उनके अनुसार उत्तराखंड में कितने गिद्ध बचे हैं, इसका आकलन करना मुश्किल है। एक अनुमान के हिसाब से प्रदेश में 300 से 500 गिद्ध बचे हैं। जिनमें खाकी रंग के गिद्ध सर्वाधिक हैं। वहीं इनमें कुछ काले पंख वाले, सफेद गर्दन वाले, भूरे रंग व सफेद गिद्ध भी मिल जाते हैं। शिक्षक दिनेश कुकरेती के अनुसार अब लाल गर्दन वाला व लाल पंख वाला गिद्ध नहीं दिखाई देता। प्रदेश में अब मात्र पांच प्रकार के गिद्ध रह गए हैं। यदि सरकार ने अभी भी इनके संरक्षण को ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाली पीढ़ी को गिद्ध सिर्फ चित्रों में ही नजर आएंगे।

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