माता कूष्मांडा की पूजा-अर्चना कर लगाए जयकारे

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विकासनगर। चैत्रीय नवरात्र के चौथे दिन माता के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा अर्चना की गई। मंदिरों और घरों में दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ किया गया। मंदिरों में घंटे, घंडियाल और शंखध्वनि के साथ देर शाम तक का गुणमान किया गया। डूंगाखेत के पंडित जयप्रकाश नौटियाल ने श्रद्धालुओं को बताया कि माता कूष्मांडा का स्वरूप बड़ा अद्भुत और विलक्षण है। इनकी आठ भुजाएं हैं, जिनमें इन्होंने कमण्डल, धनुष-बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र और गदा धारण करती हैं। अष्टभुजा माता के आठवें हाथ में सिद्धियों और निधियों की जप माला है। इनकी सवारी सिंह है। काली माता मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित मनोज पैन्यूली ने बताया कि शास्त्रों में माता कुष्मांडा को सृष्टि का निर्माण करने वाली देवी कहा गया है। जब धरती पर किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं था तब कूष्मांडा देवी ने अपनी हंसी से इस सृष्टि का निर्माण किया था। कूष्मांडा कुम्हड़े को भी कहते हैं, लिहाजा देवी को कुम्हड़े की बलि अति प्रिय है। नवरात्रि में जो भी श्रद्धालु माता को कुम्हड़े की बलि चढ़ाता है, उनके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं और उनका बिगाड़ा काम भी बनने लगता है।
पंडित एवं शिक्षक राम नारायण रतूड़ी ने भक्तों को बताया कि मां कूष्मांडा का तेज इन्हें सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता देता है। इतना तेज और किसी में भी नहीं है। समस्त दिशाएं और ब्रह्मांड इनके प्रभामण्डल से प्रभावित है। माता अपने भक्त की आराधना से जल्दी ही प्रसन्न हो जाती हैं। बताया कि देवी पुराण के अनुसार, इस दिन चार कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। इस दिन स्त्रियां हरे रंग के कपड़े पहनती हैं, हरा रंग प्रकृति का माना गया है। ब्रह्म वैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय एक के अनुसार, भगवती प्रकृति भक्तों के अनुरोध से अथवा उनपर कृपा करने के लिए विविध रूप धारण करती हैं।

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