1200 टन अवैध खनन पकड़ा
-एसडीएम ने भाबर क्षेत्र में की कार्रवाई
-रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेजी
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : कोटद्वार विधानसभा में अवैध खनन का कारोबार बिना किसी रोक-टोक के आराम से फल-फूल रहा है। खानापूर्ति के लिए कभी कभार कुछएक अवैध खननकारी पर कार्रवाई होती है, लेकिन आज तक कोटद्वार की नदियों का सीना चीरने वालों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है। हालांकि, कोटद्वार के उपजिलाधिकारी इन अवैध खननकारियों पर नकेल कसने का प्रयास कर रहे हैं, इसी के तहत उन्होंने भाबर क्षेत्र में 1200 टन आरबीएम के अवैध खनन के भंडारण को सील किया है।
उपजिलाधिकारी (एसडीएम) संदीप कुमार ने बताया कि उन्हें काफी समय से कोटद्वार क्षेत्र में अवैध खनन के भंडारणों की सूचना मिल रही है। जिसके तहत उन्होंने टीम के साथ भाबर क्षेत्र में छापेमारी की कार्रवाई की। छापेमारी के दौरान उन्हें देवरामपुर में 1200 टन आरबीएम का अवैध भंडारण मिला। उन्होंने बताया कि जांच में पता चला कि यह भंडारण किसी सुरेश असवाल नाम के व्यक्ति का है। उक्त व्यक्ति को मौके पर बुलाया गया, लेकिन वह नहीं आया। जिसके बाद प्रशासन ने भंडारण को सील कर दिया। उन्होंने बताया कि अवैध भंडारण करने पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इसके अलावा आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेज दी गई है। डीएम के निर्देशानुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी।
आखिर किसका है खनन माफिया को संरक्षण
-कोटद्वार की नदियों में खोद दी गई हैं गहरी खाइयां
-फिर भी जिम्मेदार बैठे हैं आंखे मूंदे हुए
सुनील भट्ट
कोटद्वार : कोटद्वार क्षेत्र में अवैध खनन की बात करें तो बीते पांच सालों में यहां खनन माफिया ने बड़े ही आराम से पैर पसारे हैं। इन बीते सालों में कोई भी एक उदाहरण सामने नहीं दिखा है, जिससे ऐसा लगे कि शासन-प्रशासन अवैध खनन पर कार्रवाई को लेकर गंभीर है।
कोटद्वार क्षेत्र में अवैध खनन माफिया इस कदर हावी है कि पूर्व में जिन लोगों ने खनन के लिए पट्टे लिए थे, उनमें से भी कई ने नियमों के विरुद्ध जाकर खनन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी का नतीजा है कि आज हमें कोटद्वार की मालन, सुखरौ, खोह नदियों में खाई जैसे गड्ढे आसानी से देखने को मिल जाते हैं। सवाल यह है कि जब आम जनता को भी यह खेल आसानी समझ में आ रहा है तो शासन-प्रशासन को इसे समझने में इतनी कठिनाई क्यों हो रही है। सूत्रों के अनुसार इस खनन माफिया की पहुंच काफी ऊपर तक है, जिसकी मदद से यह आसानी से किसी भी प्रकार की कार्रवाई से बच जाते हैं।
नवंबर में भी सामने आया था पट्टा धारक की ओर से किए गए अवैध खनन का मामला
बता दें कि बीते नवंबर माह में उपजिलाधिकारी ने तेली स्रोत नाले में अवैध खनन करने पर काशीरामपुर मल्ला निवासी मनीष अग्रवाल के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसका पट्टा सील कर दिया था। दरअसल, मनीष अग्रवाल को तेली स्रोत में चुगान को लेकर पट्टा आवंटित किया गया था। इसके लिए उन्हें सवा दो करोड़ रुपये से अधिक की रायल्टी जमा करनी थी। उन्हें 3120 घन मीटर में 27120 टन खनिज चुगान की अनुमति थी। हालांकि, उन्होंने पूरी रायल्टी जमा किए बिना ही करीब 16200 घन मीटर में 42504 टन खनिज का चुगान कर दिया। इतनी बड़ी मात्रा में अवैध खनन देख प्रशासन के भी होश उड़ गए। यह तो सिर्फ एक मामला था, जो प्रशासन की नजर में आया। यदि अवैध खनन पर गंभीरता से कार्रवाई की जाए तो ऐसे कई नाम सामने आ सकते हैं, जिन्होंने सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगाया है।
वन क्षेत्र के अंतर्गत सबसे ज्यादा अवैध खनन !
जब भी अवैध खनन की बात आती है तो सिर्फ राजस्व विभाग के अंतर्गत आने वाली नदियों पर ही विशेष फोकस किया जाता है। जबकि वन क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। शायद इसी बात का फायदा उठाकर खनन माफिया वन क्षेत्र में धड़ल्ले से अवैध खनन को अंजाम दे रहा है। विभागीय सूत्रों की माने तो वन विभाग के नियम ही कुछ ऐसे हैं कि जिला खनन अधिकारी समेत राजस्व विभाग के अधिकारी सबकुछ जानने के बाद भी वन क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन पर कार्रवाई नहीं कर पाते हैं। वहीं अगर वन विभाग के अधिकारियों की बात करें तो ऐसा लगता है मानों उन्होंने अवैध खनन की ओर आंखे मूंद ली हों।
वन क्षेत्र में अवैध खनन पर नप चुके हैं डीएफओ
पिछले दिनों वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने वन क्षेत्र में मिल रही अवैध खनन की शिकायतों का संज्ञान लेते हुए लैंसडौन वन प्रभाग के डीएफओ दीपक कुमार पर कार्रवाई की थी। जिसके तहत उन्हें मुख्यालय अटैच किया गया। पत्रकारों से वार्ता में मंत्री ने बताया था कि अवैध खनन की शिकायत पर उन्होंने जब वन क्षेत्र की नदियों का निरीक्षण किया तो पाया कि चैनेलाइजेशन के नाम पर वहां बड़े-बड़े गड्ढे खोद दिए गए हैं। साथ ही उपखनिज को सुरक्षा दीवार के रूप में नदियों के किनारे लगाने के बजाय उसे बेच दिया गया। उन्होंने कहा था कि पूरे मामले की जांच को विशेष टीम गठित की जा रही है, लेकिन ऐसी जांच टीमों की कोई ठोस जांच और उस पर कार्रवाई का उदाहरण आज तक देखने को नहीं मिला है। ऐसी जांचें फाइलों में ही शुरू होती हैं और फाइलों में समाप्त भी हो जाती हैं।
क्या अवैध खनन में निचले कर्मचारियों की कोई जिम्मेदारी नहीं?
जब भी किसी व्यक्ति को खनन के लिए पट्टा आवंटित किया जाता है तो खनन विभाग और प्रशासन संयुक्त रूप से उस पर निगरानी के लिए एक टीम गठित करते हैं। जिसमें निचले स्तर के कर्मचारियों को शामिल किया जाता है। इन्हें जिम्मेदारी दी जाती है कि वह समय-समय पर पट्टे धारक की ओर से किए जा रहे खनन का निरीक्षण करेंगे और किसी भी प्रकार की अनियमितता पाए जाने पर उच्च अधिकारियों को सूचित करेंगे। लेकिन शायद ही ऐसा कभी होता है, क्योंकि ऐसा होता तो पट्टे धारकों की ओर से अवैध खनन का कोई सवाल ही नहीं उठता। जिला खनन अधिकारी के अनुसार मनीष अग्रवाल मामले में भी एक टीम को निगरानी के लिए रखा गया था। हालांकि, टीम की लापरवाही का ही नतीजा है कि इतने बड़े स्तर पर अवैध खनन को आसानी से अंजाम दे दिया गया। सवाल यह है कि क्या ऐसे कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए जो अपनी जिम्मेदारियों को लेकर इस तरह की लापरवाही बरत रहे हैं। ऐसा ही वन क्षेत्र के अंतर्गत है। सवाल यहां भी उठना लाजमी है कि क्या अवैध खनन और तमाम अनियमितताओं के लिए सिर्फ डीएफओ ही जिम्मेदार हैं, या इसमें अन्य के भी मिले होने की संभावना है। हालांकि इस सब से पर्दा जांच के बाद ही उठ पाएगा, लेकिन वह जांच कब पूरी होगी यह किसी को नहीं पता।