नवरात्रों में दर्शनों के लिए उमड़ती है भक्तों की भारी भीड़
हरिद्वार। धर्मनगरी हरिद्वार में माँ दुर्गा के अनेक मंदिर है। इनमे बावन शक्ति पीठों में से एक प्रख्यात मां चंडी देवी मंदिर नील पर्वत पर स्थित है। मां चंडी देवी मंदिर में मां भगवती चंडी देवी दो रूपो रुद्र चंडिका खम्ब रूप में और मंगल चंडिका के रूप में विराजमान है। प्राचीन और पौराणिक मां चंडी देवी मंदिर में पूरे साल भक्तो का तांता लगा रहता है। खासतौर पर नवरात्रों में भक्तों की भारी भीड़ मंदिर में उमड़ती है। श्रद्घालु भक्त तीन किलोमीटर की कठिन चढ़ाई कर मंदिर पहुंचते हैं। उड़नखटोले से भी मंदिर पहुंचा जा सकता है। मान्यता है कि नवरात्रों मंदिर में सच्चे मन से की गयी प्राथना को स्वीकार कर मां चंडी भक्तों की सभी मन्नतें पूरी करती है। इसी मान्यता के चलते चौत्र व शारदीय नवरात्रों में देश विदेश से श्रद्घालु भक्त मां के दरबार में अपनी मन्नतो को लेकर पंहुचते हैं। नवरात्रों के बाद लगने चंडी चौदस के मेले में भी बड़ी संख्या में श्रद्घालु मंदिर पहुंचते हैं।
शास्त्रों में वर्णन है कि जब शुम्भ निशुम्भ व महिसासुर ने धरती पर प्रलय मचाया हुआ था। तब देवताओं ने उनका संहार करने का प्रयास किया। लेकिन जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने भगवान् भोलेनाथ के दरबार में गुहार लगायी। तब भगवान् भोलेनाथ के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया और चंडी का रूप धर कर दैत्यों को दौड़ाया तो शुम्भ निशुम्भ नील पर्वत पर आकर छिप गए। मा चंडी ने नील पर्वत पहुंचकर खंभ रूप में प्रकट हो कर दोनों का वध कर दिया। दोनों दैत्यों का वध करने के पश्चात उन्होंने देवताओं से वर मांगने को कहा तो देवी देवताओं ने मानव जाति के कल्याण के लिए के लिए माता से नील पर्वत पर विराजमान रहने का वर मांगा। तब से मां भगवती चंडी रूप में नील पर्वत पर विराजमान रहकर भक्तों का कल्याण कर रही है। चंडी देवी मंदिर के परमाध्यक्ष महंत रोहित गिरी ने बताया कि आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रूद्र चंडिका एवं मंगल चंडिका के रूप में विराजमान मां भगवती की पूजा अर्चना की गयी। नवरात्रों मे जो भक्त यहां आते है। मां चंडी उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करती हैं। महंत रोहित गिरी ने कहा कि नवरात्रों में मां के सभी रूपों की पूजा अर्चना करने से परिवारों मे सुख समृद्घि का वास होता है। मां की आराधना कष्टों को दूर करती है। देश दुनिया में मां चंडी देवी की प्रसिद्घि है।