उत्तराखंड

कुमाउनी के संवर्धन को क्षेत्रीय बोलियों का संग्रह तैयार करना जरूरी

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हल्द्वानी। कुमाऊं की आर्थिक राजधानी हल्द्वानी में तीन दिनी राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन शुरू हो गया है। पहले दिन शुक्रवार को हीरानगर के गोल्ज्यू दरबार में पूजा-पाठ के बाद सम्मेलन का आगाज हुआ। शुभारंभ सत्र में कुमाउनी भाषा की प्राचीनता व उसमें रचे साहित्य, नई शिक्षा नीति और कुमाउनी भाषा को लेकर व्याख्यानमाला का लंबा दौर चला। कुमाउनी भाषा को भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर भी विद्वानों ने अपने विचार रखे। इस बात पर जोर दिया कि कुमाऊं की सभी क्षेत्रीय बोलियों की शब्दावलियों का एक संग्रह तैयार करना होगा, ताकि कुमाउनी का संरक्षण और संवर्धन हो सके। कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्ति प्रचार समिति व कुमाउनी मासिक पत्रिका ‘पहरू की ओर से आयोजित 14वें राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन की शुरुआत में छोल्यारों ने पारपंरिक नृत्य और युद्घ कौशल की प्रस्तुति दी। छोल्यारों की धुन पर साहित्यकारों, कलाकारों और इसके संवर्धन की दिशा में काम करने वाले लोगों के कदम जमकर थिरके। हीरानगर पर्वतीय सांस्तिक उत्थान मंच स्थित आयोजन स्थल पर पद्मश्री ड़ यशोधर मठपाल, पद्मश्री प्रो़ शेखर पाठक, देव सिंह पिलख्वाल, शिक्षाविद् ड़क केसी जोशी, साहित्यकार हरिसुमन बिष्ट, भारतीय भाषा समिति भारत सरकार के ड़ राकेश सिंह, संयोजक ड़ बहादुर सिंह बिष्ट, प्रो़ दिवा भट्ट, दयानन्द आर्य, प्रो़ देव सिंह पोखरिया ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित किया। इस दौरान जय नंदा लोक कला केंद्र अल्मोड़ा के कलाकारों ने शगुनाखर, देवी स्तुति ‘दैंण है जाये मां दुर्गा भवानी और स्वागत गीत ‘धन्य भाग हमारा, तुम जो आया की प्रस्तुति दी। इस मौके पर उदय किरौला, पीसी बाराकोटी, ब्रिगेडियर धीरेंद्र जोशी, नमिता सुयाल, गजेंद्र बटरोही, गिरीश चंद्र बिष्ट, हुकुम सिंह कुंवर, रमेश चंद्र धपोला, ड़ दीपा कांडपाल, ड़ लता कांडपाल, नारायण सिंह बिष्ट, राजेंद्र ढैला, ड़क कैलाश डोलिया, बिपिन चंद्र पांडे आदि मौजूद रहे।

 

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